Tuesday, November 11, 2025
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डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट: भविष्य की पारदर्शिता की नई पहचान

कल्पना कीजिए कि आप जब भी कोई उत्पाद खरीदते हैं — चाहे वह एक स्मार्टफ़ोन हो, जूते हों या कोई परिधान — आप अपने मोबाइल से उसका QR कोड स्कैन करते हैं और तुरंत जान लेते हैं कि वह कहाँ बना, किन सामग्रियों से तैयार हुआ, किसने बनाया और उसका पर्यावरण पर कितना असर पड़ा।
यह किसी विज्ञान कथा की कहानी जैसी लगे, लेकिन यही दुनिया अब तेज़ी से हमारे सामने आकार ले रही है — Digital Product Passports या डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट्स इसकी अगुवाई कर रहे हैं।

यूरोपीय संघ से लेकर भारत तक, अब कंपनियाँ उत्पादन से जुड़ी पारदर्शिता बढ़ाने और स्थायी (sustainable) तरीकों को अपनाने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं। यह डिजिटल पहचान, सिर्फ़ उत्पाद नहीं बल्कि एक संस्कृति, एक सोच और एक ज़िम्मेदारी का प्रमाण बन रही है।


डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट क्या है?

Digital Product Passport एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ है जो किसी उत्पाद के बारे में हर महत्वपूर्ण जानकारी को एकीकृत करता है — उत्पादन प्रक्रिया, सामग्री, ऊर्जा उपयोग, पुनर्चक्रण योग्यता, कार्बन फुटप्रिंट, और यहाँ तक कि मरम्मत या पुनः उपयोग के दिशानिर्देश।

सरल शब्दों में, यह उत्पाद का “डिजिटल आधार कार्ड” है।
जिस पास से हमें किसी व्यक्ति की पहचान मिलती है, उसी तरह Digital Product Passport से किसी वस्तु की संपूर्ण डिजिटल पहचान मिलती है।

उदाहरण के लिए:

  • अगर आप एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस खरीदते हैं, तो DPP बताएगा कि उसमें कौन सी बैटरी लगी है, कितना ऊर्जा उपयोग होता है, कौन से पुर्जे बदलने योग्य हैं, और यह उत्पाद कितने वर्षों तक उपयोगी है।
  • फ़ैशन उद्योग में, एक DPP यह दिखा सकता है कि कपड़े बनाने में कौन सी सामग्री इस्तेमाल हुई, क्या वह ethically sourced है, और क्या उसे पुनःचक्रित किया जा सकता है।

कैसे करता है यह सिस्टम काम?

हर उत्पाद को एक यूनिक डिजिटल कोड (जैसे QR या NFC टैग) दिया जाता है, जो एक डिजिटल डेटाबेस से जुड़ा होता है। इस डेटाबेस में उत्पाद से जुड़ी दर्जनों जानकारियाँ संग्रहीत रहती हैं।

इस प्रक्रिया में तीन मुख्य घटक सक्रिय होते हैं:

  1. उत्पाद निर्माता — जो सटीक डेटा रिकॉर्ड करते हैं।
  2. डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म या क्लाउड — जो इस डेटा को सुरक्षित तरीके से संग्रहीत करते हैं।
  3. उपभोक्ता और नियामक एजेंसियाँ — जो इस डेटा को सत्यापित या उपयोग कर सकती हैं।

यह प्रणाली ब्लॉकचेन तकनीकIoT सेंसर और AI आधारित एनालिटिक्स से संचालित होती है, जिससे डेटा न केवल पारदर्शी बल्कि छेड़छाड़-रोधी भी रहता है।


क्यों ज़रूरी हैं Digital Product Passports?

दुनिया जिस रफ़्तार से उत्पादन और उपभोग बढ़ा रही है, उसी अनुपात में अपशिष्ट (waste) और पर्यावरणीय नुकसान भी बढ़ रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर वर्ष लगभग 53 मिलियन टन ई–वेस्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से अधिकांश को पुनर्चक्रित नहीं किया जा सकता।
इसी संकट से निपटने के लिए, यूरोपीय संघ ने “Circular Economy Action Plan” के तहत 2027 तक अधिकांश उत्पादों में DPP को अनिवार्य करने का प्रस्ताव रखा है।

भारत के लिए इसका महत्व बेहद गहरा है।
यह देश तीव्र गति से “Make in India” और “Digital India” के युग में बदल रहा है। यदि भारत इस प्रणाली को अपनाता है, तो यह न केवल निर्यात योग्यता बढ़ाएगा, बल्कि स्थानीय उद्योगों को वैश्विक मानकों तक पहुंचाने में भी मदद करेगा।


पारदर्शिता से उपभोक्ता सशक्तिकरण तक

Digital Product Passports सिर्फ़ कंपनियों या नियामकों तक सीमित नहीं हैं — यह आम उपभोक्ताओं को नई शक्ति देते हैं।

  • विश्वसनीय जानकारी: अब ग्राहकों को मार्केटिंग दावों पर भरोसा करने की जगह प्रमाणित डेटा देखने की सुविधा मिलेगी।
  • सतत विकल्प: लोग आसानी से यह जान सकेंगे कि कौन-से उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल हैं।
  • मरम्मत की सुविधा: उत्पाद की संरचना व उपयोग डेटा उपलब्ध होने से, DIY repairs और लोकल सर्विस इकोनॉमी को भी बढ़ावा मिलेगा।

इससे उपभोक्ता सचेत और ज़िम्मेदार खरीदारी की ओर अग्रसर होंगे — जो किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए स्थायी विकास का मूल आधार है।


यूरोप से भारत तक: नीतिगत परिप्रेक्ष्य

यूरोपीय आयोग (EU Commission) के अनुसार, DPP को 2026–2030 के बीच चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा, पहले इलेक्ट्रॉनिक्स और बैटरी उत्पादों से शुरुआत की जाएगी।
इसके बाद यह वस्त्र, औद्योगिक उपकरण और निर्माण सामग्री तक विस्तार करेगा।

भारत में भी NITI AayogBureau of Indian Standards (BIS) और Ministry of Electronics & IT (MeitY) जैसी संस्थाएँ ऐसी डिजिटल पारदर्शिता को बढ़ावा देने की दिशा में चर्चाएँ कर रही हैं।
“Digital Product Passports” की अवधारणा National Industrial Policy 2025 के हिस्से के रूप में उभर सकती है।


डिजिटल प्रोडक्ट पासपोर्ट और सस्टेनेबल अर्थव्यवस्था

सतत विकास यानी ऐसा विकास जो भविष्य की पीढ़ियों को बिना नुकसान पहुँचाए वर्तमान की ज़रूरतें पूरी करे। DPP इसमें तीन स्तरों पर योगदान देता है:

  1. आर्थिक स्तर:
    कंपनियाँ संसाधनों की बेहतर निगरानी कर सकती हैं, जिससे उत्पादन लागत घटती है।
  2. पर्यावरणीय स्तर:
    उत्पादों की उत्पत्ति और जीवनचक्र पर नज़र रखने से कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है।
  3. सामाजिक स्तर:
    पारदर्शिता के कारण बाल श्रम, अनैतिक स्रोत या शोषण जैसी समस्याएँ कम होती हैं।

संक्षेप में, यह डिजिटल दस्तावेज़ ‘जवाबदेह उत्पादन’ की दिशा में एक ठोस कदम है।


वास्तविक उदाहरण: कैसे कंपनियाँ कर रही हैं इसे लागू

  • Adidas और H&M अपनी कपड़ों की श्रृंखला में Digital Product Passports का प्रयोग कर रही हैं, जहाँ ग्राहक कपड़ों के टैग स्कैन करके विस्तृत डेटा देख सकते हैं।
  • Tesla और BMW अपनी बैटरी व पुर्जों के डिजिटल इतिहास को ब्लॉकचेन पर संग्रहीत करते हैं, ताकि पुनः उपयोग और मरम्मत में आसानी हो।
  • Apple भी अपनी self-repair programme में DPP को जोड़ने की दिशा में कार्यरत है।

भारत में, Reliance Industries और Tata Steel जैसे समूह भी आपूर्ति श्रृंखला डेटा की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए डिजिटल समाधान अपना रहे हैं।


चुनौतियाँ और चिंताएँ

हर नई तकनीक की तरह, Digital Product Passports के सामने भी कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं:

  • डेटा सुरक्षा: इतनी संवेदनशील जानकारी के डिजिटल रूप में संग्रहण से साइबर जोखिम बढ़ सकते हैं।
  • मानकीकरण: विभिन्न देशों और उद्योगों में डेटा प्रारूपों की असमानता से interoperability मुश्किल हो सकती है।
  • लागत: छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए यह व्यवस्था लागू करना प्रारंभिक रूप से महंगा साबित हो सकता है।
  • प्रशिक्षण और जागरूकता की कमी: तकनीकी विशेषज्ञता की न्यूनता adoption को धीमा कर सकती है।

फिर भी, इन बाधाओं के बावजूद, भविष्य की अर्थव्यवस्था डिजिटल पारदर्शिता की नींव पर ही टिकेगी।


भारत की भूमिका और अवसर

भारत जैसे विशाल बाजार के लिए, Digital Product Passports कई संभावनाओं के द्वार खोलते हैं:

  • एक्सपोर्ट-रेडी उद्योग: यूरोप व अन्य बाज़ारों में निर्यात करने वाली भारतीय कंपनियाँ यदि DPP मानकों को अपनाती हैं, तो उन्हें प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलेगी।
  • रोज़गार सृजन: डेटा मैनेजमेंट, ब्लॉकचेन विकास और सस्टेनेबल सप्लाई चेन्स में नए करियर अवसर बनेंगे।
  • स्मार्ट उपभोक्ता क्रांति: भारत के टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी उपभोक्ता जागरूकता बढ़ेगी।

तकनीक के मूल में: ब्लॉकचेन, IoT और AI

Digital Product Passports का दिल है डेटा — और उसे सुरक्षित रखता है ब्लॉकचेन
IoT सेंसर लगातार उत्पाद की स्थिति और लोकेशन अपडेट करते हैं, जबकि AI सिस्टम इस डेटा का विश्लेषण करके predictive maintenance और carbon optimization जैसे निष्कर्ष निकालते हैं।

इन तीनों का मेल एक ऐसी प्रणाली जन्म देता है जहाँ हर चरण डिजिटल रूप से दर्ज होता है — from cradle to grave, या यूँ कहें from factory to future


भारतीय स्टार्टअप्स और नवाचार की दिशा

भारत के कई स्टार्टअप इस विचार को तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं:

  • TraceX Technologies (Bengaluru): कृषि आपूर्ति श्रृंखला में ट्रेसबिलिटी बढ़ाने के लिए ब्लॉकचेन आधारित पासपोर्ट विकसित कर रही है।
  • IOTA India Network: औद्योगिक डेटा साझाकरण के लिए IoT-integrated DPP सॉल्यूशन्स पर काम कर रहा है।
  • Recykal और Banyan Nation: प्लास्टिक व इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के डिजिटल मॉनिटरिंग की दिशा में प्रयासरत हैं।

ये नवाचार भारत को न केवल अपनाने वाला बल्कि innovator nation बनने का अवसर प्रदान करते हैं।


उपभोक्ता विश्वास की नई परिभाषा

आज के दौर में उपभोक्ताओं का भरोसा “ब्रांड” से ज्यादा “डेटा” पर टिकता है।
Digital Product Passports इसी विश्वास को नया आयाम देते हैं — जहाँ पारदर्शिता ही असली मार्केटिंग बन जाती है।

कभी जो टैग सिर्फ़ “Made in India” लिखा करता था, वह अब “Verified through Digital Product Passport” कहेगा — यही है बदलाव की शुरुआत।


भविष्य का रास्ता: नीतियों से संस्कृति तक

Digital Product Passports सिर्फ़ एक नियामक औज़ार नहीं हैं, बल्कि यह एक संस्कृति परिवर्तन का संकेत हैं —
एक ऐसी संस्कृति, जहाँ उत्पादन, उपभोग और पर्यावरण सब एक-दूसरे से सुसंगत हों।

आने वाले वर्षों में, भारत के लिए ज़रूरी होगा कि:

  • राष्ट्रीय मानक व डिजिटल डेटाबेस स्थापित किए जाएँ।
  • MSMEs को तकनीकी सहायता दी जाए।
  • शिक्षा और स्किल ट्रेनिंग में सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी को शामिल किया जाए।

निष्कर्ष: पारदर्शिता है भविष्य की नई मुद्रा

भविष्य का बाज़ार, भरोसे के डेटा पर चलेगा।
Digital Product Passports उस भरोसे की ठोस नींव हैं — एक ऐसी दुनिया की ओर, जहाँ हर वस्तु बोलती है, बताती है और जवाब देती है कि वह कहाँ से आई और कहाँ जा रही है।

यह सिर्फ़ तकनीक नहीं, बल्कि मानवता की पारदर्शिता की ओर बढ़ता हुआ कदम है।
आइए, हम सब मिलकर इस यात्रा में शामिल हों — क्योंकि आने वाले कल का हर उत्पाद, अपनी कहानी खुद सुनाना चाहता है।

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