Tuesday, October 28, 2025
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पहलगाम आतंकी हमले में शहीद शुभम द्विवेदी की पत्नी ऐशन्या द्विवेदी का भारत-पाक मैचों के खिलाफ दर्दनाक विरोध

पहलगाम में हुआ हालिया आतंकी हमला न केवल भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की गंभीरता को सामने लाता है, बल्कि एक बार फिर से भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलता और खेल, खासकर क्रिकेट, के जरिए बनने वाले रिश्तों पर गहरा सवाल खड़ा करता है। इस हमले में शहीद हुए जवान शुभम द्विवेदी ने देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया, लेकिन इस दुखद घटना का सबसे भावुक और मार्मिक पहलू सामने आया, जब उनकी पत्नी ऐशन्या द्विवेदी ने खुलकर भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मुकाबलों का विरोध किया।

ऐशन्या ने कहा कि जब पाकिस्तान समर्थित आतंकी भारत के जवानों की जान ले रहे हैं, तब ऐसे में भारत द्वारा पाकिस्तान से क्रिकेट या अन्य खेल संबंध रखना शहीद परिवारों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।


पहलगाम आतंकी हमला: घटना की पृष्ठभूमि

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में एक भीषण आतंकी हमला हुआ जिसमें भारतीय जवानों ने अदम्य साहस दिखाते हुए आतंकियों का मुकाबला किया। इस हमले में कई जवान घायल हुए, जबकि कुछ वीर सपूतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहादत दी। शुभम द्विवेदी उन्हीं शहीदों में से एक थे, जिनकी वीरता और बलिदान ने न केवल देश को गौरवान्वित किया बल्कि हर नागरिक की आंखों को नम कर दिया।

पहलगाम का इलाका आतंकियों के लिए हमेशा से रणनीतिक रहा है क्योंकि यहां पर्यटन के साथ-साथ अमरनाथ यात्रा से भी जुड़ा महत्व है। ऐसे समय में यह हमला साफ करता है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद अब भी भारतीय सुरक्षा तंत्र और नागरिक जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है।


शहीद शुभम द्विवेदी की कहानी

शुभम द्विवेदी उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे और देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत होकर उन्होंने भारतीय सुरक्षा बल में शामिल होने का निर्णय लिया था। उनके साथी बताते हैं कि वे ड्यूटी को हमेशा देश सेवा का सबसे बड़ा धर्म मानते थे।

उनकी शहादत के बाद पूरे गांव और समाज में गहरा शोक छा गया। परिवार के सदस्य, खासकर पत्नी ऐशन्या के लिए यह एक अकल्पनीय क्षति थी। फिर भी ऐशन्या ने जो साहस दिखाया, वह अपने आप में प्रेरणा है।

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ऐशन्या द्विवेदी का भारत-पाक मुकाबलों के खिलाफ विरोध

अपने पति की शहादत के बाद ऐशन्या ने मीडिया से बातचीत में कहा:

“जब पाकिस्तान से आए आतंकी हमारे घर के चिराग बुझा रहे हैं, तब भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच केवल दिखावा हैं। खेल के नाम पर रिश्तों को सामान्य दिखाने से पहले देश को शहीद परिवारों का दर्द समझना होगा।”

यह बयान न केवल उनके निजी दुख का प्रतीक था, बल्कि यह करोड़ों भारतीयों की भावना भी दर्शाता है। भारत में लंबे समय से यह बहस चल रही है कि जब तक आतंकवाद रुक नहीं जाता, तब तक पाकिस्तान से खेल संबंध समाप्त कर देने चाहिए।

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भारत-पाक क्रिकेट: राजनीति और कूटनीति

भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट हमेशा से केवल खेल नहीं रहा, बल्कि यह दोनों देशों के राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्तों का प्रतीक भी रहा है। कई बार खेल के जरिए दोनों देशों में दोस्ती का संदेश देने की कोशिश हुई, लेकिन हर बार सीमा पर बढ़ते आतंकवादी हमले इस प्रयास को विफल कर देते हैं।

  • 2008 मुंबई हमला के बाद लंबे समय तक द्विपक्षीय सीरीज बंद रही।
  • पुलवामा हमला (2019) के बाद भारत में पाकिस्तान को वर्ल्ड कप से बाहर करने की मांग उठी।
  • अब पहलगाम हमला के बाद ऐशन्या द्विवेदी जैसे शहीद परिवारों का विरोध खेल-राजनीति की धारा को नई दिशा दे सकता है।

खेल बनाम आतंक: समाज की नई आवाज़

आज का बड़ा प्रश्न यह है कि क्या खेल को वाकई पूरी तरह “खेल” मानकर राजनीति और आतंक से अलग रखा जा सकता है? जब मासूम नागरिक और सैनिक लगातार आतंकवाद का शिकार बने हुए हैं, तब लाखों भारतीय मानते हैं कि भारत-पाक क्रिकेट केवल आतंकियों को नैतिक आधार देने जैसा है।

शहीदों के परिवार अक्सर यह सवाल उठाते हैं कि सरकार और खेल संस्थाएँ क्यों इतनी जल्दी खेल संबंध सामान्य करना चाहती हैं। ऐशन्या का विरोध समाज में इस मुद्दे को और प्रखर बना रहा है।

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शहीद परिवारों का संदेश

भारत के कई शहीद परिवार पहले भी इस मांग को उठाते रहे हैं कि पाकिस्तान के साथ किसी भी स्तर पर संबंध तब तक बहाल नहीं होने चाहिए जब तक सीमा पार से आतंक की जड़ें पूरी तरह समाप्त न हो जाएं।

ऐशन्या का यह पक्ष केवल एक पत्नी का आंसू नहीं बल्कि एक शहीद परिवार की पुकार है, जो पूरे देश की सरकार और खेल संगठन तक पहुंचाना जरूरी है।

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निष्कर्ष

पहलगाम का आतंकी हमला एक बार फिर यह साबित करता है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भारतीय समाज और व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा है। क्रिकेट जैसे खेल रिश्ते भी जब शहीद परिवारों के जख्मों को गहरा कर रहे हों, तब समाज और सरकार को गंभीरता से इस पर विचार करना चाहिए।

ऐशन्या द्विवेदी का साहस और उनका स्पष्ट संदेश हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या आतंक के साथ क्रिकेट खेलना सही है? शायद अब समय आ गया है कि भारत यह तय करे कि राष्ट्रीय सुरक्षा और शहीदों की कुर्बानी से बढ़कर कोई ‘खेल भावना’ नहीं हो सकती।

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