आज जब दुनिया डिजिटल भविष्य की दौड़ में बिजली जैसी गति से भाग रही है, वहीं एक अदृश्य खतरा धीरे-धीरे हमारे चारों ओर फैल रहा है — Post-Quantum Cryptography की जरूरत का खतरा।
यह केवल तकनीकी या गणितीय विमर्श नहीं है; यह मानव सभ्यता के डिजिटल अस्तित्व का प्रश्न है।
डिजिटल भरोसे की नींव कहाँ डगमगा रही है?
हर रोज़, अरबों संदेश, लेन-देन, और व्यक्तिगत जानकारी इंटरनेट की असंख्य गलियों में बहती हैं।
हमारे बैंकिंग सिस्टम, रक्षा नेटवर्क, और सरकारी डाटाबेस आधुनिक एन्क्रिप्शन पर टिकी दीवारों में सुरक्षित हैं — RSA, ECC, AES जैसी प्रणालियाँ इन दीवारों की नींव हैं।
लेकिन जब क्वांटम कंप्यूटर पूरे जोश से सक्रिय होंगे, ये नींव बर्फ की तरह पिघल सकती हैं।
क्वांटम कंप्यूटिंग क्या है: शक्ति या संकट?
क्वांटम कंप्यूटिंग का अर्थ है — ऐसे कंप्यूटर जो बिट्स नहीं, बल्कि “क्यूबिट्स” पर चलते हैं।
जहाँ पारंपरिक बिट केवल 0 या 1 होता है, वहीं क्यूबिट दोनों अवस्थाओं को एक साथ रख सकता है।
इसके परिणामस्वरूप, quantum computers एक साथ अरबों संभावनाओं की गणना कर सकते हैं — यही तो जादू है, और यही डर भी।
IBM, Google, और चीन के विज्ञान संस्थान पहले से ऐसे प्रोटोटाइप बना चुके हैं जो 400–500 क्यूबिट्स तक पहुँच चुके हैं।
हालाँकि ये संख्या आज सीमित लगती है, पर 2030 तक अनुमान है कि इतने शक्तिशाली क्वांटम सिस्टम तैयार होंगे जो पारंपरिक एन्क्रिप्शन को तोड़ देंगे।
क्रिप्टोग्राफी की जंग: RSA vs Quantum
RSA (Rivest–Shamir–Adleman) एन्क्रिप्शन आज इंटरनेट के हर लेन-देन का प्रहरी है।
यह दो विशाल प्राइम नंबरों के गुणनफल पर आधारित है, जिसे किसी भी पारंपरिक कंप्यूटर द्वारा हल करना अरबों साल ले सकता है।
परन्तु, एक क्वांटम कंप्यूटर Shor’s Algorithm की मदद से इस रहस्य को मिनटों में सुलझा सकता है।
कल्पना कीजिए — आपके बैंक खातों के पासवर्ड, शासन की सीक्रेट फाइलें, सैन्य कोड — सब कुछ अचानक खुला मैदान बन जाए!
यहीं से शुरू होती है Post-Quantum Cryptography की कहानी।
Post-Quantum Cryptography: नई सुरक्षा का युग
Post-Quantum Cryptography या संक्षेप में PQC वे एन्क्रिप्शन पद्धतियाँ हैं जो क्वांटम कंप्यूटरों से सुरक्षित रहेंगी।
ये नई पीढ़ी की क्रिप्टोग्राफी है — जहाँ गति, सुरक्षा, और भविष्यवादी सोच का संगम होता है।
अमेरिकी NIST (National Institute of Standards and Technology) ने इस दिशा में 2016 से प्रतियोगिता प्रारंभ की थी।
2022 में इसके पहले फाइनलिस्ट एल्गोरिद्म घोषित किए गए — CRYSTALS-Kyber और CRYSTALS-Dilithium अब नए मानक बन रहे हैं।
भारत की भूमिका: क्या हम तैयार हैं?
भारत एक डिजिटल राष्ट्र के रूप में तेज़ी से उभर रहा है।
आधार, UPI, और डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने करोड़ों नागरिकों को नेटवर्क से जोड़ा है।
पर यही नेटवर्क अब एक संभावित साइबर युद्ध का मैदान बन रहा है।
भारतीय रक्षा अनुसंधान संस्थान (DRDO) और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय पहले से PQC पर अध्ययन शुरू कर चुके हैं।
कुछ स्टार्टअप — जैसे QNu Labs और ISAC India — क्वांटम-सेफ कम्युनिकेशन पर काम कर रहे हैं।
फिर भी, व्यापक स्तर पर नीति, शिक्षा, और उद्योग के सहयोग की भारी कमी है।
कॉर्पोरेट जगत में क्वांटम खतरा
Microsoft, Google, और IBM जैसे टेक दिग्गजों ने पहले से अपनी सुरक्षा नीतियों में PQC को शामिल करना शुरू किया है।
Google ने 2024 में अपने Chrome ब्राउज़र में Hybrid PQC algorithms पर प्रयोग शुरू किए, जिनमें पुरानी और नई क्रिप्टोग्राफी को एक साथ जोड़ा गया।
यह संकेत है: संक्रमण का युग शुरू हो चुका है।
भारत में वित्तीय संस्थान जैसे SBI, HDFC Bank, और NPCI को भी अभी से PQC-ready होना पड़ेगा।
क्योंकि जब एक वैश्विक बदलाव आएगा, तब देर करना सबसे बड़ा नुकसान साबित होगा।
साइबर अपराधियों की नजरें भी तैयार हैं
जहाँ सरकारें अपने सिस्टम मजबूत करने में लगी हैं, वहीं Nation-State Hackers पहले से “Harvest Now, Decrypt Later” रणनीति पर काम कर रहे हैं।
इसका अर्थ यह है — अभी डेटा चुराओ, स्टोर करो, और जब क्वांटम मशीनें तैयार होंगी, तब उसे डिक्रिप्ट करके पढ़ो।
यानी खतरा भविष्य का नहीं, आज का है।
PQC के प्रमुख एल्गोरिद्म कौन-कौन से हैं?
- CRYSTALS-Kyber: तेज़ और छोटा key exchange system, जिसे NIST ने प्राथमिकता दी है।
- CRYSTALS-Dilithium: डिजिटल सिग्नेचर के लिए क्वांटम-सुरक्षित उपाय।
- Falcon और SPHINCS+: वैकल्पिक सिग्नेचर स्कीम जिनमें लचीलापन और दक्षता दोनों हैं।
- BIKE, FrodoKEM: रिसर्च चरण में परंतु promising उम्मीदवार।
इन सभी एल्गोरिद्म का उद्देश्य है — ऐसा सुरक्षा तंत्र बनाना जो क्वांटम और क्लासिकल दोनों कंप्यूटरों से बेरोकटोक काम करे।
भारत में अनुसंधान और शिक्षा की चुनौती
भारतीय विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों को अब Quantum Cryptography को पाठ्यक्रम में प्रमुख स्थान देना होगा।
IITs और IISc जैसे संस्थानों ने “Quantum Research Hubs” स्थापित किए हैं लेकिन यह शोध अभी शुरुआती स्तर पर है।
यदि देश को डिजिटल रूप से आत्मनिर्भर बनना है, तो यह क्षेत्र नई प्रतिभाओं की मांग करेगा।
सरकारी नीतियाँ और मार्गदर्शन
2025 में भारत सरकार ने “National Quantum Mission” के तहत अनुसंधान और अनुप्रयोग के लिए 6000 करोड़ रुपये की घोषणा की है।
इस मिशन का उद्देश्य है — भारत को 2030 तक क्वांटम प्रौद्योगिकी के वैश्विक केंद्रों में शामिल करना।
The Velocity News के स्रोतों के अनुसार, इसके अंतर्गत साइबर सुरक्षा एजेंसियों में PQC readiness मूल्यांकन प्रारंभ हो चुका है।
वास्तविक दुनिया में प्रभाव
मान लें आपका बैंक UPI डेटा सुरक्षित करने के लिए 2048-बिट RSA का उपयोग करता है।
एक बार क्वांटम कंप्यूटर का उपयोग करके यह RSA तोड़ा गया, तो आपके लेन-देन, पहचान, और संपत्ति पर किसी और का नियंत्रण हो सकता है।
इसीलिए, 2025–2030 के बीच PQC माइग्रेशन सबसे बड़ा तकनीकी बदलाव होगा।
क्या क्वांटम नेटवर्क समाधान हैं?
क्वांटम की वितरण (QKD) भी एक वैकल्पिक सुरक्षा तकनीक है, जिसमें संदेश भेजने और ग्रहण करने वाला केवल वही जान सकता है कि कौन-सी कुंजी इस्तेमाल हुई है।
हालांकि यह सबके लिए व्यावहारिक नहीं, लेकिन रक्षा और सरकारी संचार के लिए यह भविष्य की ढाल होगी।
भावनात्मक परिदृश्य: भरोसे की परीक्षा
क्रिप्टोग्राफी केवल गणित नहीं, विश्वास की भाषा है।
जब कोई व्यक्ति किसी वेबसाइट पर अपना ओटीपी डालता है या मेडिकल रिकॉर्ड क्लाउड पर अपलोड करता है, वह अदृश्य भरोसे पर निर्भर करता है।
PQC उसी भरोसे का भविष्य गढ़ रहा है — ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी डिजिटल दुनिया पर भरोसा कर सकें।
मीडिया और टेक न्यूज में उभरती बहस
The Velocity News ने हालिया रिपोर्ट में बताया कि “PQC adoption in India may determine its digital sovereignty.”
विशेषज्ञ मानते हैं कि क्वांटम रेडी होना सिर्फ तकनीकी मजबूती नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है।
यही कारण है कि जैसे-जैसे क्वांटम इंटरनेट नज़दीक आ रहा है, नेताओं, उद्योगों और नागरिकों तीनों को मिलकर इस चेतावनी को समझना होगा।
दुनिया के बड़े कदम
अमेरिका ने “Quantum Cybersecurity Preparedness Act” पारित किया है,
चीन ने 2028 तक पूर्ण क्वांटम नेटवर्क की योजना बनाई है,
और यूरोपियन यूनियन ने “QSAFE” नामक विशाल शोध कार्यक्रम शुरू किया है।
यह स्पष्ट है — दुनिया एक नई एन्क्रिप्शन रेस में है।
भारतीय उद्योग के लिए एक रोडमैप
- बैंकों और IT कंपनियों को Hybrid PQC ट्रायल शुरू करने चाहिए।
- सरकारी क्लाउड (MeghRaj) में सुरक्षित एल्गोरिद्म का इंटिग्रेशन किया जाना चाहिए।
- National Institute of Cryptology को विश्वस्तरीय PQC टेस्ट लैब बनाना चाहिए।
- AI और Blockchain आधारित सिस्टम में क्वांटम-सेफ इनपुट शामिल हों।
निष्कर्ष: भविष्य के लिए चेतावनी और अवसर
क्वांटम कंप्यूटर आने वाले हैं — यह तय है।
पर उनका प्रभाव क्या होगा, यह तय करेगा कि हमने कितनी तैयारी की है।
Post-Quantum Cryptography केवल तकनीक नहीं, बल्कि डिजिटल स्वतंत्रता की रक्षा है।
आज यदि हमने कदम उठाए, तो कल हमारे बच्चे सुरक्षित डिजिटल विरासत पाएंगे।
अब सवाल है — क्या हम सिर्फ डरने के लिए तैयार हैं, या लड़ने के लिए भी?
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