भारत में संपत्ति के अधिकार और उत्तराधिकार से जुड़े कानूनों में कई पेचिदगियां हैं, जिनसे हर व्यक्ति परिचित नहीं होता। खासकर जब यह सवाल दादा की संपत्ति में पोते के अधिकार का होता है, तो लोग भ्रमित हो जाते हैं। क्या एक पोता अपने दादाजी की स्व-प्राप्त संपत्ति पर दावा कर सकता है? इस ब्लॉग में हम इस सवाल का कानूनी पहलू समझेंगे और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के संदर्भ में इसे विस्तृत रूप से जानेंगे।
1. स्व-प्राप्त संपत्ति और उत्तराधिकार
हमारी पारिवारिक संपत्तियों के स्वामित्व को लेकर कुछ अहम कानूनी पहलू होते हैं। यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में अपने प्रयासों से संपत्ति अर्जित की हो (जैसे दादा ने अपनी मेहनत से संपत्ति बनाई हो), तो इसे “स्व-प्राप्त संपत्ति” (Self-Acquired Property) कहा जाता है। ऐसे में इस संपत्ति पर किसी के भी अधिकार को लेकर कुछ नियम हैं।
जब दादा की बात आती है, तो यदि वह अपनी संपत्ति को किसी वसीयत के जरिए किसी को सौंपने का निर्णय लेते हैं, तो उनकी इच्छा सबसे महत्वपूर्ण होती है। अगर वह बिना वसीयत के निधन हो जाते हैं, तो उनकी संपत्ति उनके कानूनी वारिसों के बीच बांटी जाएगी।
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2. पोते का अधिकार
अब सवाल यह है कि क्या एक पोता अपनी दादाजी की स्व-प्राप्त संपत्ति पर अधिकार जता सकता है? जवाब है नहीं।
पोते का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है जब तक कि उसे यह संपत्ति किसी कानूनी वारिस के रूप में नहीं दी जाती। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत, यदि संपत्ति परिवार के विभाजन के समय दादाजी के पुत्र को दी जाती है, तो पोते का कोई जन्मसिद्ध अधिकार उस संपत्ति पर नहीं बनता।
3. वसीयत न होने पर अधिकार
यदि दादा ने अपनी संपत्ति को वसीयत के माध्यम से किसी को नहीं सौंपा और वह बिना किसी वसीयत के निधन हो जाते हैं, तो केवल उनके कानूनी वारिस ही संपत्ति पर अधिकार कर सकते हैं। ये वारिस दादा की पत्नी, पुत्र, और पुत्रियाँ (बेटियाँ) हो सकते हैं।
इस स्थिति में, पोते को किसी भी प्रकार के अधिकार का दावा करने का कोई हक नहीं होता। वह केवल अपने पिता के हिस्से का उत्तराधिकारी हो सकता है, अगर उसके पिता की मृत्यु हो चुकी हो।
4. दादा के बेटे या बेटी की मृत्यु के बाद
यदि दादा के किसी भी बेटे या बेटी की मृत्यु पहले हो चुकी है, तो उनके कानूनी उत्तराधिकारी को वह हिस्सा मिलेगा जो पहले उनके पिता या माता को मिलना था। ऐसे में पोता केवल अपने पिता का हिस्सा ही पा सकता है, न कि सीधे दादा की संपत्ति का।
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5. पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा
जब किसी पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा होता है, तो उसमें दादा की स्व-प्राप्त संपत्ति शामिल नहीं होती, जब तक कि उस संपत्ति पर कोई कानूनी दावा न किया जाए। यदि दादा की संपत्ति उसके पुत्र को दी जाती है, तो पोते का अधिकार केवल अपने पिता के हिस्से पर हो सकता है, यदि वह जीवित नहीं हैं।
6. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का महत्व
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, भारत में संपत्ति के उत्तराधिकार और बंटवारे के लिए प्रमुख कानूनी ढांचा है। यह अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि परिवार के सदस्य—पति, पत्नी, संतान, माता-पिता, आदि—किस प्रकार संपत्ति पर दावा कर सकते हैं। लेकिन इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि दादा की स्व-प्राप्त संपत्ति पर पोते का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता।
इस अधिनियम के तहत, एक पोता केवल अपने पिता का हिस्सा प्राप्त करने का हकदार होगा यदि उसके पिता की मृत्यु पहले हो चुकी है।
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7. क्या पोता अपनी दादी के हिस्से का दावा कर सकता है?
यदि दादा की मृत्यु हो जाती है और दादी जीवित रहती हैं, तो दादी की संपत्ति में पोते का अधिकार हो सकता है, लेकिन यह उसके कानूनी उत्तराधिकार और दादी की इच्छा पर निर्भर करता है। अगर दादी अपनी संपत्ति को वसीयत के द्वारा किसी और को दे देती हैं, तो पोते का कोई अधिकार नहीं होता।
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8. निष्कर्ष
इस प्रकार, एक पोता अपनी दादाजी की स्व-प्राप्त संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रखता, जब तक कि वह इसे अपने पिता के हिस्से के रूप में न पाए। दादा की संपत्ति पर अधिकार केवल उनके कानूनी वारिस—पत्नी, पुत्र, या पुत्री—का ही हो सकता है। यह सब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 द्वारा नियंत्रित होता है, और पोते का अधिकार तभी होता है जब उसका पिता पहले गुजर चुका हो और पोते को उसके हिस्से का उत्तराधिकारी के रूप में माना जाता हो।




