Wednesday, October 29, 2025
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डिजिटल छल का जाल: कैसे फ़िशिंग और सोशल इंजीनियरिंग मानव मन को बेवकूफ़ बनाकर करोड़ों का नुकसान कर रही है

भारत में इंटरनेट की पहुँच जितनी तेज़ी से बढ़ी है, उतनी ही रफ़्तार से बढ़े हैं डिजिटल ठगों के हथकंडे। Phishing and Social Engineering यानी फ़िशिंग और सोशल इंजीनियरिंग, आज के समय के सबसे खतरनाक ऑनलाइन अपराधों में शामिल हो चुके हैं। ई-मेल, मैसेज या नकली वेबसाइट के माध्यम से मासूम इंटरनेट यूज़र्स को धोखा देना अब साइबर अपराधियों का “आसान पेशा” बन चुका है।


1. फ़िशिंग क्या है? और कैसे काम करती है यह चालाकी?

फ़िशिंग वह प्रक्रिया है जिसमें अपराधी किसी भरोसेमंद संस्था, बैंक, या वेबसाइट के नाम पर नकली ई-मेल, लिंक या संदेश भेजते हैं। इसका उद्देश्य केवल एक होता है — आपकी व्यक्तिगत जानकारी चुराना, जैसे यूज़रनेम, पासवर्ड, या बैंकिंग डिटेल्स।

इन ई-मेल्स में आमतौर पर “आपका खाता बंद होने वाला है” या “आपको इनाम मिला है” जैसी बातें होती हैं, जो तुरंत ध्यान खींचती हैं। यूज़र जैसे ही उस लिंक पर क्लिक करता है, उसका डेटा अपराधियों के हाथों में चला जाता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर 10 में से 6 ऑनलाइन यूज़र पिछले एक साल में किसी न किसी रूप में फ़िशिंग के शिकार हुए हैं।


2. सोशल इंजीनियरिंग: इंसान ही बनता है सबसे मज़बूत और सबसे कमज़ोर कड़ी

Social Engineering केवल तकनीकी धोखाधड़ी नहीं है — यह मानव मन के साथ खेल है।
यह अपराधियों की वह कला है जिसमें वे व्यक्ति की भावनाओं, विश्वास और डर का इस्तेमाल करते हैं।

उदाहरण के लिए, एक कॉल आ सकती है कि “मैं आपके बैंक से बोल रहा हूँ, OTP बताइए ताकि आपका कार्ड एक्टिवेट कर सकें।”
वह आवाज़ इतनी आत्मविश्वास भरी होती है कि व्यक्ति बिना सोचे OTP साझा कर देता है।
यही है सोशल इंजीनियरिंग की ताक़त।


3. भारत में बढ़ते फ़िशिंग अटैक: आंकड़े बताते हैं डरावनी कहानी

The Velocity News की साइबर सुरक्षा रिपोर्ट 2025 बताती है:

  • भारत में हर महीने लगभग 8 लाख फ़िशिंग अटैक दर्ज किए जा रहे हैं।
  • सरकारी विभागों, बैंकों और ई-कॉमर्स कंपनियों के नाम पर नकली वेबसाइट्स की संख्या पिछले साल की तुलना में 38% बढ़ी है।
  • सबसे ज़्यादा शिकार हुए हैं 25 से 40 वर्ष आयु के युवा प्रोफेशनल्स, जो ऑनलाइन बैंकिंग या पेमेंट ऐप्स का अधिक इस्तेमाल करते हैं।

साइबर अपराध अब किसी “टेक्निकल समस्या” से बढ़कर एक सामाजिक समस्या का रूप ले चुका है।


4. एक सच्ची कहानी: जब भरोसे का “क्लिक” बना जाल

राजेश (नाम परिवर्तित) दिल्ली के एक प्राइवेट बैंक में काम करते थे। उन्हें एक दिन ईमेल मिला — “आपका वेतन अकाउंट अपडेट करें, नहीं तो अकाउंट बंद हो जाएगा।”
ईमेल असली बैंक जैसी दिख रही थी। उन्होंने लिंक खोला और यूज़रनेम-पासवर्ड दर्ज किया।
मिनटों में उनका ₹1.4 लाख का नुकसान हो गया।
राजेश कहते हैं — “मुझे लगा मैं टेक-सेवी हूँ, लेकिन मैं भूल गया कि इंसान के भावनाएं भी हैक हो सकती हैं।”

यही सोशल इंजीनियरिंग की असली ताक़त है।


5. अपराधी कैसे पहचानते हैं आपका कमजोर पक्ष

सोशल इंजीनियरिंग की सबसे खतरनाक बात है — यह “डेटा” नहीं बल्कि “भावनाओं” पर आधारित होती है।
ठग पहले आपकी सोशल मीडिया गतिविधियों को देखते हैं, फिर उसी के अनुसार हमला करते हैं।

  • अगर आप नौकरी की तलाश में हैं, तो फर्जी HR ईमेल भेजेंगे।
  • अगर आप बैंकिंग ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं, तो बैंक फ्रॉड के नाम पर कॉल करेंगे।
  • अगर आपने कोई ऑनलाइन शॉपिंग की है, तो डिलीवरी कन्फर्मेशन के नाम पर लिंक भेजेंगे।

हर परिस्थिति में लक्ष्य एक होता है: आपसे जानकारी निकलवाना।


6. तकनीक की आड़ में भरोसे की चोरी

ज्यादातर लोग सोचते हैं कि फ़िशिंग केवल तकनीकी हैकिंग से जुड़ी है। लेकिन असल में, यह “विश्वास की हैकिंग” है।
आपका ईमेल, आपका OTP, आपका मोबाइल — सब सुरक्षित रह सकते हैं, लेकिन अगर आपका मन असुरक्षित है, तो कोई भी सिस्टम आपको नहीं बचा सकता।

2024 में CERT-In (Indian Computer Emergency Response Team) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल भारत में फ़िशिंग से जुड़े 14 लाख से अधिक केस सामने आए।


7. The Velocity News की विशेषज्ञ राय

“Technology can protect systems, but awareness protects people.” — यह कथन आज के भारत के लिए बिल्कुल सही बैठता है।

The Velocity News के तकनीकी विश्लेषण के अनुसार, भारत में 70% ऑनलाइन यूज़र्स अभी भी यह पहचान नहीं पाते कि कोई ईमेल या वेबसाइट असली है या नकली।
इसका सीधा अर्थ है कि हमें सिर्फ एंटीवायरस नहीं, बल्कि Anti-Phishing Mindset की ज़रूरत है।


8. फ़िशिंग और सोशल इंजीनियरिंग के प्रमुख प्रकार

  • Email Phishing: नकली ईमेल जो असली कंपनी जैसे दिखते हैं।
  • Spear Phishing: चुने हुए व्यक्ति या संस्था पर लक्षित हमला।
  • Smishing: SMS या WhatsApp के ज़रिए की गई ठगी।
  • Vishing: Voice Call के ज़रिए की गई सोशल इंजीनियरिंग।
  • Clone Phishing: असली ईमेल की क्लोन कॉपी बनाकर भेजना।

इन सभी का उद्देश्य एक ही — डेटा और पैसे की चोरी।


9. सोशल मीडिया पर बढ़ता जाल

आज फ़िशिंग केवल ईमेल तक सीमित नहीं है।
Instagram, Facebook, और LinkedIn जैसे प्लेटफॉर्म सोशल इंजीनियरिंग के नए अड्डे बन गए हैं।

लोग नकली प्रोफाइल बनाकर संबंधों या भरोसे का दुरुपयोग करते हैं। फर्जी जॉब ऑफ़र, लॉटरी, या निवेश अवसर देकर व्यक्तियों से पैसे ठगे जाते हैं।
एक बार व्यक्ति भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है, तो वो खुद अपराधियों को अपनी निजी जानकारी सौंप देता है।


10. पहचान कैसे करें: नकली ईमेल या लिंक

  • ईमेल में स्पेलिंग मिस्टेक्स या गलत डोमेन देखें (जैसे – icicibakn.com)।
  • कभी भी OTP या Password ईमेल लिंक से न डालें।
  • बैंक, सरकार, या Paytm जैसी कोई भी संस्था OTP या पिन नहीं मांगती।
  • “too good to be true” ऑफ़र्स हमेशा नकली होते हैं।
  • URL में हमेशा “https://” और सही डोमेन जांचें।

अगर थोड़ा भी संदेह हो — क्लिक न करें।


11. डिजिटल युग में आत्मरक्षा के 5 सरल उपाय

  1. दो-स्तरीय सुरक्षा (Two-Factor Authentication) हमेशा एक्टिव रखें।
  2. एंटीवायरस और फ़ायरवॉल को अपडेटेड रखें।
  3. अनजान लिंक या फ़ाइल डाउनलोड से बचें।
  4. सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत जानकारी साझा करने से पहले सोचें।
  5. फ़िशिंग की शिकायत तुरंत cybercrime.gov.in पर दर्ज करें।

12. सरकार और कंपनियों की भूमिका

भारत सरकार की “Cyber Surakshit Bharat” पहल अब स्कूलों, बैंकों और कॉर्पोरेट सेक्टर तक फैल चुकी है।
The Velocity News ने पाया कि कई कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को फ़िशिंग ट्रेनिंग दे रही हैं ताकि वे नकली ईमेल को पहचान सकें।

बैंकिंग सेक्टर भी अब “Zero Click Policy” अपना रहा है — यानी अगर कोई संदेहास्पद लिंक बिना क्लिक के डिटेक्ट होता है, तो उसे तुरंत ब्लॉक कर दिया जाता है।


13. जब डेटा ही मुद्रा बन गया है

21वीं सदी में डेटा ही नया “सोना” बन चुका है।
जो आपके डेटा को पकड़ लेता है, वही आपके ऊपर नियंत्रण रखता है।
Phishing and Social Engineering इस “डेटा की दौड़” में सबसे घातक हथियार बन चुके हैं।

हर व्यक्ति के लिए यह समझना आवश्यक है कि आज धोखाधड़ी केवल कमजोर सिक्योरिटी सॉफ़्टवेयर की वजह से नहीं, मानव जिज्ञासा की वजह से भी होती है।


14. The Velocity News की अपील

हम सभी से यही आग्रह करते हैं — अपने डिजिटल जीवन को उतना ही सुरक्षित बनाइए जितना आप अपने घर का दरवाज़ा बंद रखते हैं।
क्लिक करने से पहले सोचिए। साझा करने से पहले जांचिए।
आपका एक छोटा सा कदम, एक बड़े साइबर अपराध को रोक सकता है।


15. निष्कर्ष: क्लिक से पहले सोचिए

फ़िशिंग और सोशल इंजीनियरिंग का खेल बिना गोली या हथियार के चलता है, लेकिन इसका असर एक गोली से कम नहीं।
यह इंसान के डर, लालच और भरोसे का फायदा उठाता है।
यदि हर यूज़र थोड़ा सजग हो जाए, तो यह डिजिटल जाल खुद-ब-खुद कमजोर पड़ जाएगा।

आज, “Awareness is the strongest firewall.”
अब वक्त है कि भारत डिजिटल रूप से सिर्फ़ आगे नहीं बढ़े — बल्कि सुरक्षित भी बने।


अगर आपको यह लेख उपयोगी लगा, तो इसे साझा करें और अपने अनुभव कमेंट में बताएं।
अधिक जानकारी या सहयोग हेतु संपर्क करें — The Velocity News टीम।

A visual illustration showing a hacker sending fake emails and phishing links to unsuspecting internet users in India.

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