नई दिल्ली: भारत का सुप्रीम कोर्ट जल्द ही एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाने वाला है, जिसमें यह तय होगा कि समान लिंग विवाह (Same-Sex Marriage) को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं। इस मुद्दे पर पिछले कुछ महीनों से लगातार सुनवाई और बहस चल रही है। LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों को लेकर यह फैसला भारतीय संविधान के समानता, स्वतंत्रता और गरिमा के मूल अधिकारों से जुड़ा है।
मामले की पृष्ठभूमि:
समान लिंग विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गईं थीं, जिनमें यह मांग की गई कि भारत में विवाह का अधिकार केवल विभिन्न लिंग (heterosexual) जोड़ों तक सीमित नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) और 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार) का हवाला देते हुए तर्क दिया कि LGBTQ+ समुदाय को भी विवाह का समान अधिकार मिलना चाहिए।
सुनवाई के दौरान मुख्य तर्क:
1. याचिकाकर्ताओं का पक्ष:
- LGBTQ+ समुदाय को भारतीय संविधान के तहत समान अधिकार प्राप्त हैं।
- विवाह का अधिकार जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और किसी को इससे वंचित करना भेदभावपूर्ण है।
- विश्व के कई देशों ने समान लिंग विवाह को कानूनी मान्यता दी है, और भारत को भी सामाजिक प्रगति के इस कदम को अपनाना चाहिए।
2. सरकार का पक्ष:
- केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर विरोध जताते हुए कहा कि विवाह का अधिकार केवल विधायिका (Parliament) का क्षेत्राधिकार है।
- सरकार का यह भी तर्क है कि समान लिंग विवाह की मान्यता भारतीय संस्कृति और परंपराओं के अनुरूप नहीं है।
- विवाह को केवल प्रजनन और पारिवारिक इकाई के निर्माण से जोड़ा गया है, इसलिए इसे पारंपरिक ढांचे में ही देखा जाना चाहिए।
3. न्यायपालिका की टिप्पणी:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करते समय यह ध्यान रखना होगा कि:
“संविधान के तहत किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। मानव गरिमा और अधिकार सभी के लिए समान हैं।”
भारत में LGBTQ+ अधिकारों का सफर:
- 2018 में ऐतिहासिक फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को आंशिक रूप से रद्द कर समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया। - वर्तमान लड़ाई:
LGBTQ+ समुदाय अब विवाह, संपत्ति अधिकार, गोद लेने के अधिकार और सामाजिक मान्यता की लड़ाई लड़ रहा है। - सामाजिक स्वीकृति:
कानूनी बदलाव के बावजूद समाज में LGBTQ+ समुदाय को अब भी भेदभाव और असमानता का सामना करना पड़ता है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य:
समान लिंग विवाह को कई देशों जैसे अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में कानूनी मान्यता मिल चुकी है। भारत में इस फैसले का असर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी देखा जा सकता है।
संभावित असर:
- सामाजिक बदलाव:
यदि सुप्रीम कोर्ट समान लिंग विवाह को कानूनी मान्यता देता है, तो यह भारत में सामाजिक स्वीकृति को बढ़ावा देगा। - कानूनी सुधार:
यह फैसला विवाह से जुड़े अन्य अधिकार जैसे गोद लेने, संपत्ति और उत्तराधिकार में भी समानता सुनिश्चित करेगा। - नैतिक और सांस्कृतिक बहस:
भारत में यह फैसला समाज के पारंपरिक और आधुनिक विचारों के बीच बहस को और तेज करेगा।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला भारत के LGBTQ+ समुदाय के समान अधिकारों और मानवीय गरिमा को एक नई दिशा दे सकता है। यह निर्णय न केवल भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों को सुदृढ़ करेगा बल्कि भारत को समानता और प्रगतिशील समाज की ओर भी ले जाएगा।