Tuesday, October 28, 2025
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बीसीआई ने CJI बी. आर. गवई पर हमले के प्रयास के लिए अधिवक्ता राकेश किशोर को निलंबित किया

भारत के न्यायिक इतिहास में एक गंभीर और असामान्य घटना सामने आई है, जब 6 अक्‍टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई के प्रति एक अधिवक्ता ने हमले का प्रयास किया। इस घटना के तुरंत बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने अधिवक्ता राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। इस घटना ने कानून, न्यायपालिका की गरिमा एवं सुरक्षात्मक प्रबंधों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इस ब्लॉग में हम इस पूरे मामले का विस्तार से विश्लेषण करेंगे, जिससे पाठकों को पूरी जानकारी के साथ समझने में आसानी हो।

घटना की पृष्ठभूमि

दिनांक 6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट के कक्ष संख्या 1 में सुनवाई के दौरान, अधिवक्ता राकेश किशोर ने अपने जूते निकालकर मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की ओर फेंकने का प्रयास किया। सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए उन्हें हिरासत में ले लिया। रिपोर्ट के अनुसार, किशोर ने न्यायालय में ज़ोर से कहा, “सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेंगे।” यह घटना सुनवाई के दौरान हुई, जिससे कोर्ट की कार्यवाही बाधित हुई और न्यायपालिका की सुरक्षा एवं माहौल पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया की प्रतिक्रिया

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस घटना को बेहद गंभीरता से लिया और अधिवक्ता राकेश किशोर को तुरंत प्रभाव से निलंबित कर दिया। बीसीआई ने अधिवक्ता अधिनियम 1961 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रोफेशनल कंडक्ट और एटिकेट नियमों के तहत कार्रवाई की। अधिवक्ता को कोर्ट, ट्रिब्यूनल या अन्य किसी भी न्यायिक या अधिकारिक संस्था में पेश होने, कार्य करने, पैरवी करने या प्रैक्टिस करने से प्रतिबंधित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त, बीसीआई ने राकेश किशोर को 15 दिनों के भीतर यह स्पष्ट करने के लिए नोटिस दिया है कि निलंबन जारी क्यों नहीं रखा जाना चाहिए और आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए।

कानून और न्यायपालिका की गरिमा पर प्रभाव

किसी भी अधिवक्ता या न्यायिक पेशे से जुड़े व्यक्ति का कर्त्तव्य होता है कि वह न्यायालय की गरिमा और प्रतिष्ठा का सम्मान करे। अधिनियम और प्रोफेशनल एटिकेट नियम इस संबंध में स्पष्ट हैं कि अधिवक्ता को अदालत में सम्मानजनक व्यवहार बनाए रखना चाहिए और किसी भी प्रकार की अनुचित या अवैध हरकत से बचना चाहिए, जो न्यायपालिका के कार्य में हस्तक्षेप कर सकती हो। राकेश किशोर के इस कृत्य को इस संदर्भ में एक गंभीर उल्लंघन माना गया जो अदालत की गरिमा के खिलाफ है।

सुरक्षा प्रबंधन और कोर्ट रूम की सुरक्षा

इस घटना से कोर्ट रूम सुरक्षा के महत्व और उसकी सख्ती पर भी सवाल उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट के भीतर सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत मानी जाती है कि कोई भी व्यक्ति इस प्रकार का हमला करने में सफल न हो। हालांकि, इस अप्रत्याशित घटनाक्रम ने सुरक्षा प्रबंधकों को सतर्क कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने भी इस घटना के बाद सुरक्षा अधिकारियों के साथ बैठक कर सुरक्षा प्रोटोकॉल की समीक्षा की।

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की प्रतिक्रिया

इस घटना के तुरंत बाद, मुख्य न्यायाधीश गवई ने शालीनता का परिचय देते हुए कहा, “इन बातों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। सुनवाई जारी रखो।” यह प्रतिक्रिया न्यायपालिका की स्थिरता और उसके उच्चतम स्तर पर अनुशासन के प्रति समर्पण का उदाहरण है। कोर्ट में मौजूद प्रमुख न्यायाधीशों ने भी शांति बनाए रखने के लिए निर्देश दिए और सुनवाई बाधित न होने दी।

विवाद का सामाजिक और धार्मिक संदर्भ

अधिवक्ता राकेश किशोर के हनिकारक कृत्य के पीछे एक सामाजिक-धार्मिक असहमति के संकेत मिले हैं। बताया गया कि किशोर CJI के एक हालिया मामले में की गई टिप्पणी से नाराज़ थे, जिसमें उन्होंने मध्य प्रदेश के खजुराहो में भगवान विष्णु के एक मूर्ति के पुनर्स्थापना मामले पर अपने विचार व्यक्त किए थे। किशोर का यह बयान “सनातन धर्म का अपमान” होने का दावा करता है, जिसकी वजह से उन्होंने इस तरह का उग्र कृत्य किया।

अनुशासनात्मक कार्रवाई और भविष्य की प्रक्रिया

अधिवक्ता किशोर के खिलाफ अब बार काउंसिल के तहत अनुशासनात्मक hearing शुरू होगी। उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है और अगले पंद्रह दिनों मे उन्हे अपनी सफाई देनी होगी। निलंबन के दौरान किशोर किसी भी न्यायालय में पेश नहीं हो सकेंगे।BAR Council of India की इस सख्त कार्रवाई से यह संदेश गया है कि न्यायपालिका और उसके प्रति किसी भी प्रकार के आक्रमण को सहन नहीं किया जाएगा।

निष्कर्ष: न्यायपालिका की गरिमा और कानून का सम्मान

इस घटना ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया, सुप्रीम कोर्ट, और पूरे न्यायिक तंत्र के लिए एक चेतावनी का काम किया है। यह दिखाता है कि न्याय के मंदिर में भी सुरक्षा की कड़ी जरूरत है और न्यायपालिका, अधिवक्ताओं एवं आम जनता के बीच पारस्परिक सम्मान की आवश्यकता है। अधिवक्ता राकेश किशोर पर लगी सजा इस बात की याद दिलाती है कि कानून और न्याय की रक्षा सर्वोपरि है।

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