Friday, June 20, 2025
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कैश केस- जांच पैनल का प्रस्ताव जस्टिस वर्मा को हटाएं: 64 पेज की रिपोर्ट में कहा- स्टोर रूम पर जज और उनके परिवार का ही कंट्रोल था


नई दिल्ली6 मिनट पहले

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14 मार्च को दिल्ली HC जज के सरकारी बंगले में आग लगी थी। वहां दमकल कर्मियों को जले हुए 500 रुपए के नोटों से भरी बोरियां मिलीं थी।

जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिले कैश केस की जांच कर रहे पैनल की रिपोर्ट गुरुवार को सामने आई है। इसमें कहा गया है कि हाईकोर्ट जज यशवंत वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का स्टोर रूम पर सीक्रेट या एक्टिव कंट्रोल था। यहीं 14 मार्च की रात आग लगने के बाद बड़ी संख्या में अधजले नोट मिले थे।

पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे जस्टिस वर्मा के बुरे व्यवहार का पता चलता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए। घटना के समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे और अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में कार्यरत हैं।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू की अध्यक्षता वाले तीन जजों के पैनल ने 10 दिनों तक जांच की। 55 गवाहों से पूछताछ की और जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास का दौरा किया था।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को ध्यान में रखते हुए समिति इस बात पर सहमत है कि CJI के 22 मार्च के लेटर में लगाए गए आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं। आरोप इतने गंभीर है कि जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए कार्यवाही शुरू करनी चाहिए।

पैनल की रिपोर्ट की बड़ी बातें…

  • 10 चश्मदीदों ने आधी जली हुई नकदी देखी, इनमें दिल्ली फायर सर्विस, पुलिस के अधिकारी थे। इन सभी ने जस्टिस वर्मा के घर के स्टोर रूम में जले हुए नोटों के ढेर देखे थे।
  • इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (स्टोर रूम के वीडियो-फोटो) चश्मदीदों के बयानों की पुष्टि करते हैं। घटनास्थल पर लिए गए वीडियो का जस्टिस वर्मा ने भी खंडन नहीं किया है।
  • जस्टिस वर्मा के दो घरेलू कर्मचारियों राहिल/हनुमान पार्षद शर्मा और राजिंदर सिंह कार्की ने स्टोर रूम से जले हुए नोट निकाले थे। वायरल वीडियो से दोनों की आवाज मैच हुई है।
  • जस्टिस वर्मा की बेटी दीया ने वीडियो के बारे में गलत बयान दिया। कर्मचारी की आवाज पहचानने से इनकार कर दिया, जबकि कर्मचारी ने खुद स्वीकार किया था कि आवाज उसकी है।
  • परिवार की अनुमति के बिना कोई भी नहीं आ सकता था, इसलिए एक जज के स्टोर रूम में नोट रखना लगभग असंभव है, क्योंकि हर समय गेट पर तैनात 1+4 सुरक्षा गार्ड और एक पीएसओ निगरानी रखता है।
  • जस्टिस वर्मा ने स्टोर रूम से कैश मिलने की घटना को षड्यंत्र कहा, लेकिन पुलिस में कोई रिपोर्ट नहीं की। चुपचाप इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर भी स्वीकार कर लिया।
  • नकदी का कोई हिसाब नहीं था, जस्टिस वर्मा इसका हिसाब देने में असमर्थ थे। बल्कि यह कहा कि किसी ने उनके खिलाफ साजिश की थी।

2018 में भी 97.85 करोड़ रुपए के घोटाले में नाम जुड़ा था

इससे पहले 2018 में गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल में गड़बड़ी के मामले में जस्टिस वर्मा के खिलाफ CBI ने FIR दर्ज की थी। NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने मिल में गड़बड़ी की शिकायत की थी। शिकायत में कहा था कि शुगर मिल ने किसानों के लिए जारी किए गए 97.85 करोड़ रुपए के लोन का गलत इस्तेमाल किया है।

जस्टिस वर्मा तब कंपनी के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। इस मामले में CBI ने जांच शुरू की थी। हालांकि जांच धीमी होती चली गई। फरवरी 2024 में एक अदालत ने CBI को बंद पड़ी जांच दोबारा शुरू करने का आदेश दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया और CBI ने जांच बंद कर दी।

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