Saturday, April 26, 2025
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ओम बिड़ला ने विधायी निकायों की घटती बैठकों पर जताई चिंता

लोकसभा अध्यक्ष का बयान

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने हाल ही में विधायी निकायों की घटती बैठकों और उनमें भागीदारी की कमी पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के कमजोर होने का संकेत बताया और इसे दूर करने के लिए सभी संबंधित पक्षों से सुधारात्मक कदम उठाने की अपील की।


विधायी निकायों की घटती बैठकें: एक गंभीर मुद्दा

1. बैठकें कम होने का प्रभाव

  • विधायी निकायों की बैठकें कम होने से महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा और समीक्षा के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता।
  • इससे कानून बनाने की प्रक्रिया जल्दबाजी और अपर्याप्त बहस के कारण कमजोर हो जाती है।

2. जनता के मुद्दों पर कम ध्यान

  • घटती बैठकों के कारण जनता के महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और कृषि पर चर्चा सीमित हो जाती है।
  • विधायकों और सांसदों के लिए जनता की चिंताओं को उठाने का समय भी कम हो जाता है।

3. विधायी प्रक्रिया का कमजोर होना

  • कम बैठकों के कारण विधायकों और सांसदों के विचार-विमर्श और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • इससे विधायी निकायों की गुणवत्ता और प्रभावशीलता कम हो जाती है।

ओम बिड़ला की प्रमुख चिंताएं

1. पारदर्शिता की कमी

  • बिड़ला ने कहा कि बैठकें कम होने से विधायी प्रक्रिया में पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी हो रही है।
  • जनता को सरकार के निर्णयों और नीतियों के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाती।

2. कानूनों की समीक्षा और बहस का अभाव

  • बिड़ला ने जोर देकर कहा कि महत्वपूर्ण विधेयकों और बजट पर चर्चा के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जा रहा है।
  • यह कानूनों की गुणवत्ता और प्रभाव को कमजोर कर सकता है।

3. विधायकों की जिम्मेदारी और भागीदारी

  • उन्होंने विधायकों और सांसदों से अपील की कि वे बैठकों में सक्रिय भागीदारी दिखाएं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाएं।
  • “विधायकों का काम सिर्फ कानून बनाना नहीं, बल्कि जनता की आवाज उठाना और नीतियों पर सही मार्गदर्शन देना भी है।”

भारत में विधायी बैठकों का ट्रेंड

1. गिरावट के आंकड़े

  • आंकड़ों के अनुसार, भारतीय संसद और विधानसभाओं की बैठकों की संख्या में पिछले कुछ दशकों में लगातार कमी आई है।
  • संसद के सत्रों की अवधि, जो 1950-60 के दशक में औसतन 120 दिन हुआ करती थी, अब घटकर 60-70 दिन रह गई है।

2. राज्य विधानसभाओं की स्थिति

  • राज्य विधानसभाओं में भी बैठकों की संख्या में कमी देखी गई है।
  • कई विधानसभाएं साल में 30 दिनों से कम बैठकें करती हैं।

3. अंतरराष्ट्रीय तुलना

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, कई देशों में संसद और विधायी निकाय साल में 100 से अधिक दिन बैठती हैं।
  • भारत में इस संख्या में गिरावट लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी संकेत है।

इस समस्या के कारण

1. राजनीतिक प्राथमिकताएं

  • विधायी निकायों में चर्चा और बहस के बजाय राजनीतिक मतभेद हावी हो रहे हैं।
  • इसका परिणाम बैठकें बाधित होने और उत्पादकता में कमी के रूप में सामने आता है।

2. विधायकों की अनुपस्थिति

  • कई बैठकें विधायकों और सांसदों की कम उपस्थिति के कारण प्रभावित होती हैं।
  • यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है।

3. विधायी सत्रों की अनदेखी

  • सरकारें अक्सर विधायी सत्रों की अवधि को कम कर देती हैं, जिससे विधायी कामकाज का समय घट जाता है।
  • इसका असर विधेयकों की समीक्षा और पारदर्शिता पर पड़ता है।

ओम बिड़ला के सुझाव

1. विधायी बैठकों की संख्या बढ़ाना

  • बिड़ला ने सिफारिश की कि संसद और विधानसभाओं को साल में कम से कम 100 दिन बैठना चाहिए।
  • इससे विधेयकों और बजट पर पर्याप्त चर्चा और समीक्षा हो सकेगी।

2. विधायकों की जिम्मेदारी बढ़ाना

  • उन्होंने विधायकों और सांसदों से बैठकों में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की अपील की।
  • जनता की आवाज़ उठाने और उनकी समस्याओं को समाधान तक पहुंचाने के लिए विधायकों की भूमिका महत्वपूर्ण है।

3. तकनीकी का उपयोग

  • विधायी प्रक्रियाओं में डिजिटल प्लेटफॉर्म और तकनीकी उपकरणों का अधिक उपयोग किया जा सकता है।
  • इससे चर्चा और समीक्षा को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

इस समस्या के समाधान के लिए प्रयास

1. विधायी सुधार

  • विधायी निकायों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए संसद और विधानसभाओं के कामकाज में सुधार की आवश्यकता है।
  • सरकारों को सत्रों की अवधि बढ़ानी चाहिए और विधायकों को जिम्मेदार ठहराना चाहिए।

2. जनता की भागीदारी

  • जनता की भागीदारी को बढ़ाने के लिए पारदर्शिता और जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं।
  • इससे जनता अपने प्रतिनिधियों पर दबाव डाल सकेगी कि वे विधायी प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाएं।

3. प्रशिक्षण और जागरूकता

  • विधायकों और सांसदों को विधायी प्रक्रियाओं और उनकी जिम्मेदारियों पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  • यह उन्हें बेहतर तरीके से अपनी भूमिका निभाने में मदद करेगा।

निष्कर्ष

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला द्वारा विधायी निकायों की घटती बैठकों पर जताई गई चिंता भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। यह समय है कि सरकार, राजनीतिक दल, और विधायी सदस्य मिलकर इस समस्या का समाधान करें।

विधायी निकायों की बैठकों की संख्या बढ़ाने, चर्चा की गुणवत्ता सुधारने, और जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने से भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाया जा सकता है।

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