केरल में हाल ही में हुई भारी बारिश और बाढ़ के कारण राज्य के कई हिस्सों में तबाही मच गई है। इन आपदाओं के बीच केरल सरकार को बाढ़ प्रबंधन में विफलता के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। विपक्षी दलों और स्थानीय जनता ने राज्य सरकार की तैयारी की कमी और आपातकालीन सेवाओं के असंतोषजनक प्रदर्शन पर सवाल उठाए हैं।
मुख्य आरोप और घटनाएँ:
- पूर्वानुमान के बावजूद तैयारी की कमी:
- मौसम विभाग द्वारा भारी बारिश की चेतावनी दिए जाने के बावजूद सरकार और प्रशासन ने समय रहते सुरक्षा उपाय लागू नहीं किए।
- कई जगहों पर जल निकासी की व्यवस्था अप्रभावी साबित हुई।
- बाढ़ राहत कार्यों में देरी:
- बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत और बचाव कार्य देर से शुरू हुए, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया।
- लोगों को समय पर खाद्य सामग्री, स्वास्थ्य सेवाएँ, और सुरक्षित स्थानों पर शरण नहीं मिल सकी।
- संरचनात्मक खामियाँ:
- बाढ़ के दौरान कई सड़कों, पुलों और भवनों के क्षतिग्रस्त होने से इंफ्रास्ट्रक्चर की कमजोरियाँ उजागर हुईं।
- विशेषज्ञों ने अवैध निर्माण और शहरीकरण को बाढ़ की गंभीरता बढ़ाने का एक बड़ा कारण बताया है।
- निचले क्षेत्रों में जलभराव:
- कोच्चि, त्रिशूर और एर्नाकुलम जैसे जिलों में भारी जलभराव ने लोगों के सामान्य जीवन को ठप कर दिया।
विपक्ष के आरोप:
- कांग्रेस (यूडीएफ):
- “सरकार की लापरवाही और असफल प्रबंधन के कारण हजारों लोग बाढ़ में फँसे रहे। उचित योजना होती तो यह तबाही टाली जा सकती थी।”
- भाजपा:
- “केरल सरकार आपदा प्रबंधन के नाम पर सिर्फ बयानबाजी कर रही है। जमीनी स्तर पर कोई ठोस काम नहीं हुआ है।”
- स्थानीय संगठनों का विरोध:
- राहत सामग्री की अनियमित आपूर्ति और प्रभावी बचाव दलों की अनुपस्थिति को लेकर स्थानीय संगठनों ने सरकार की आलोचना की है।
सरकार का बचाव:
मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा:
“हम स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं। राहत कार्यों में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी और सभी प्रभावित परिवारों को आवश्यक मदद दी जाएगी।”
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- आपातकालीन राहत शिविर:
- बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत शिविर स्थापित किए गए हैं, जहाँ लोगों को सुरक्षित रखा जा रहा है।
- नुकसान का आकलन:
- सरकार ने बाढ़ के कारण हुए नुकसान का आकलन करने के लिए विशेष टीमों का गठन किया है।
- इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार:
- क्षतिग्रस्त सड़कों, पुलों और बिजली आपूर्ति को जल्द बहाल करने के लिए निर्माण कार्य शुरू किए गए हैं।
- वित्तीय सहायता:
- मुख्यमंत्री राहत कोष से प्रभावित परिवारों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई है।
विशेषज्ञों का विश्लेषण:
- आपदा प्रबंधन की कमी:
- विशेषज्ञों का कहना है कि केरल में हर साल होने वाली भारी बारिश के बावजूद आपदा प्रबंधन योजनाएँ प्रभावी नहीं हैं।
- जल निकासी व्यवस्था:
- शहरी क्षेत्रों में अवैध निर्माण और असंतुलित जल निकासी प्रणाली बाढ़ की समस्या को गंभीर बना रही है।
- जलवायु परिवर्तन:
- विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक रणनीति तैयार करने की सलाह दी है।
जनता की प्रतिक्रिया:
- स्थानीय लोगों ने सरकार के राहत कार्यों की धीमी गति पर नाराजगी जताई है।
- सोशल मीडिया पर भी लोगों ने प्रशासन की तैयारी की कमी और बचाव कार्यों की देरी पर सवाल उठाए हैं।
निष्कर्ष:
केरल सरकार को बाढ़ प्रबंधन की कमजोरियों को दूर करने के लिए दीर्घकालिक योजनाएँ बनानी होंगी। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए सुदृढ़ इंफ्रास्ट्रक्चर, जल निकासी व्यवस्था, और आपदा प्रबंधन के लिए बेहतर प्रौद्योगिकी और सामाजिक समन्वय की आवश्यकता है। विपक्ष के आरोपों के बीच सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह जनता का विश्वास फिर से हासिल करे और भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाए।