उपनिवेशवाद और इतिहास पर धनखड़ का बयान
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि “भारत के इतिहास का पहला मसौदा उपनिवेशवादियों द्वारा विकृत दृष्टिकोण से लिखा गया था।” उनका यह बयान भारतीय इतिहास और शिक्षा प्रणाली के पुनर्मूल्यांकन पर जोर देता है। उन्होंने भारत के ऐतिहासिक दृष्टिकोण को उपनिवेशवादियों की मंशा से प्रभावित बताते हुए इसे भारतीय संस्कृति और विरासत के साथ अन्याय करार दिया।
उपनिवेशवादियों का विकृत दृष्टिकोण: धनखड़ का तर्क
1. भारतीय इतिहास का यूरोपीय दृष्टिकोण से लेखन
- धनखड़ ने कहा कि ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने इतिहास को अपने लाभ के लिए तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया।
- उनका उद्देश्य भारतीय समाज को कमजोर करना और उनकी आत्म-गौरव की भावना को समाप्त करना था।
2. भारतीय संस्कृति और परंपरा को दबाने का प्रयास
- उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि उपनिवेशवादियों ने भारतीय परंपराओं, धर्म, और ज्ञान प्रणालियों को कमतर दिखाने की कोशिश की।
- वे भारत को एक पिछड़ा और असंगठित राष्ट्र के रूप में चित्रित करना चाहते थे।
3. विभाजनकारी नीतियां
- इतिहास को ऐसा प्रस्तुत किया गया, जिससे धर्म, जाति और क्षेत्रीय विभाजन को बढ़ावा मिला।
- “फूट डालो और राज करो” नीति का उपयोग करते हुए, इतिहास को भारतीय समाज के भीतर दरारें पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
उपनिवेशवादी इतिहास लेखन के प्रभाव
1. भारतीय शौर्य को नकारना
- ब्रिटिश लेखकों ने भारत के शौर्य और संघर्षों को कम महत्व दिया।
- 1857 का विद्रोह, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के रूप में देखा जाता है, उसे ब्रिटिश इतिहासकारों ने केवल एक “सिपाही विद्रोह” करार दिया।
2. स्थानीय नायकों की अनदेखी
- कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और क्षेत्रीय नायकों को इतिहास से हटा दिया गया या उनके योगदान को कमतर बताया गया।
- जैसे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तिपु सुल्तान, और संत गुरु गोबिंद सिंह के शौर्य को उपेक्षित किया गया।
3. भारतीय ज्ञान प्रणाली को हाशिये पर रखना
- भारतीय योग, आयुर्वेद, और शास्त्रीय विज्ञान को पश्चिमी ज्ञान प्रणालियों से कमतर बताया गया।
- तक्षशिला और नालंदा जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों के योगदान को इतिहास में उचित महत्व नहीं दिया गया।
वर्तमान में इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता
1. भारतीय दृष्टिकोण से इतिहास लेखन
- उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि भारतीय इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से लिखा जाए।
- इसका उद्देश्य भारतीय गौरव और सांस्कृतिक धरोहर को फिर से स्थापित करना है।
2. नई शिक्षा नीति और इतिहास
- धनखड़ ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का उल्लेख करते हुए कहा कि यह भारतीय इतिहास को एक नया दृष्टिकोण देने में मदद करेगी।
- इसमें स्थानीय नायकों और भारतीय ज्ञान परंपराओं को शामिल किया जाएगा।
3. युवाओं में भारतीयता का भाव जागृत करना
- उन्होंने कहा कि सही इतिहास से युवाओं में भारतीय संस्कृति और गौरव का भाव पैदा होगा।
- यह युवाओं को भारत के प्राचीन गौरव और आधुनिक चुनौतियों के प्रति जागरूक करेगा।
आलोचना और समर्थन
1. समर्थन
- कई इतिहासकार और शिक्षाविद् उपराष्ट्रपति के इस बयान से सहमत हैं।
- उनका मानना है कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारत की संस्कृति, परंपरा, और इतिहास को कमजोर करने का प्रयास किया।
2. आलोचना
- कुछ इतिहासकारों ने इस बयान को राजनीतिक एजेंडा बताया।
- उनके अनुसार, भारत का इतिहास जटिल और बहुस्तरीय है, जिसे केवल उपनिवेशवाद की छाया में देखना उचित नहीं।
भारतीय इतिहास को पुनः परिभाषित करने के प्रयास
1. नई पाठ्यपुस्तकों का निर्माण
- भारत सरकार ने इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव लाने का प्रयास शुरू किया है।
- इसमें स्थानीय नायकों, क्षेत्रीय संस्कृतियों, और प्राचीन ज्ञान को प्राथमिकता दी जा रही है।
2. डिजिटल माध्यमों का उपयोग
- डिजिटल भारत अभियान के तहत भारतीय इतिहास के अनछुए पहलुओं को प्रचारित किया जा रहा है।
- भारतीय ऐतिहासिक धरोहरों को डिजिटल रूप में संरक्षित और प्रचारित किया जा रहा है।
3. अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय इतिहास
- भारतीय इतिहास और संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।
- भारतीय दूतावास और सांस्कृतिक संगठनों के जरिए योग, आयुर्वेद, और भारतीय कला का प्रचार किया जा रहा है।
निष्कर्ष
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का यह बयान भारतीय इतिहास और उपनिवेशवाद के प्रभावों पर एक गंभीर चर्चा शुरू करता है। यह भारत के युवाओं और समाज को अपनी सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक गौरव से जोड़ने का एक प्रयास है।
हालांकि, इतिहास के पुनर्लेखन में यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा कि तथ्यों और आधुनिक दृष्टिकोण के बीच संतुलन बना रहे। इतिहास को न केवल सही दृष्टिकोण से देखा जाए, बल्कि इसे भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनाया जाए।