Wednesday, July 30, 2025
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सिंधु पर भारत ने कोई झटके में नहीं लिया फैसला? जानें पर्दे के पीछे वाला प्लान

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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकी हमले में हिन्दू पर्यटकों के नरसंहार के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट सुरक्षा समिति की बैठक में कई अहम निर्णय लिए गए. इन फैसलों में सबसे अहम और चर्चित निर्णय सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को निलंबित (abeyance) करना रहा. यह कदम पाकिस्तान को सबक सिखाने की दिशा में भारत की रणनीतिक पहल मानी जा रही है.

प्रधानमंत्री मोदी ने इस फैसले के बाद अपनी तमाम रैलियों के दौरान भी साफ शब्दों में कहा कि भारत अब पीछे हटने वाला नहीं है. उन्होंने कहा कि यह कदम पाकिस्तान की नींद उड़ा देने वाला है और भारत अब जवाबी रणनीति के तहत कार्य कर रहा है.

क्या भारत रातोंरात रोक सकता है पानी?

हालांकि इस फैसले के बाद एक सवाल बरकरार है कि क्या भारत रातोंरात इस फैसले को अमली जामा पहना सकता है. इसका जवाब है नहीं… विदेश मामलों की स्थायी समिति की हालिया बैठक में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भी सांसदों को बताया कि यह योजना लंबे समय से तैयार की जा रही थी. जलशक्ति मंत्रालय और विदेश मंत्रालय समेत कई विभाग एक सुनियोजित रणनीति के तहत इस दिशा में काम कर रहे थे.

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सरकार से जुड़े शीर्ष सूत्रों ने News18 को बताया, ‘सिंधु जल संधि को निलंबित करना एक स्थायी सर्जिकल स्ट्राइक जैसा है, क्योंकि यह पाकिस्तान की सबसे कमजोर नस पर चोट करता है. बीते तीन वर्षों से सरकार इस विकल्प पर गंभीर विचार कर रही थी.’

भारत के रास्ते में अड़ंगा डालता रहा पाक

पाकिस्तान ने इस संधि के तहत हमेशा अड़चन डालने वाला रवैया अपनाया और भारत के हित में कार्यों को रोकने का प्रयास किया. साल 1960 में हुई यह संधि उस दौर की इंजीनियरिंग तकनीकों और राजनीतिक हालात पर आधारित थी, जो आज के समय की जरूरतों के लिहाज से बहुत पीछे है. जलवायु परिवर्तन, पिघलते ग्लेशियर, बढ़ती जनसंख्या और स्वच्छ ऊर्जा की जरूरत जैसे कारणों से भारत लंबे समय से इस संधि की शर्तों पर दोबारा विचार की मांग कर रहा था.

भारत के इस कदम से पाकिस्तान की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है. सिंधु नदी प्रणाली पर भारी निर्भरता रखने वाले इस देश के लिए यह न केवल संसाधनों की लड़ाई है, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक युद्ध भी है. भारत अब छह नदियों के पानी पर कंट्रोल रखता है, और जल प्रवाह को नियंत्रित करने की शक्ति भारत के पास है.

सिंधु संधि सस्पेंड होने से क्या-क्या हुआ?

संधि के निलंबन के बाद दोनों देशों के जल आयुक्तों की बैठकें भी बंद हो गई हैं और अब किसी भी जल परियोजना के लिए पाकिस्तान से अनुमति लेने की बाध्यता समाप्त हो गई है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘हम किसी भी सामान्य निर्माण कार्य के लिए भी पाकिस्तान को छह महीने पहले सूचना देते थे, लेकिन जवाब कभी सकारात्मक नहीं होता था. अब यह बाध्यता समाप्त हो गई है, क्योंकि आयोग अब कार्यशील नहीं रहेगा.’

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सरकारी अधिकारियों का कहना है कि यह संधि ‘सद्भावना और मित्रता’ के सिद्धांत पर आधारित थी, जिसे पाकिस्तान ने आतंकवाद को बढ़ावा देकर तोड़ दिया. वर्षों तक पाकिस्तान ने भारत की उदारता को कमजोरी समझा, लेकिन अब भारत ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि उसकी सहनशीलता की सीमा खत्म हो चुकी है.

भारत ने इस निर्णय को कानूनी और कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर पूरी तरह से तैयार होकर लागू किया है. जलशक्ति मंत्रालय ने पाकिस्तान को सूचित करते हुए स्पष्ट किया कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली उसकी नीतियां भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति के अनुरूप नहीं हैं. साथ ही भारत ने विश्व बैंक को पहले ही विश्वास में ले लिया है. विश्व बैंक ने साफ कर दिया है कि वह केवल एक ‘मध्यस्थ’ की भूमिका में है, इस विवाद के समाधान में उनकी कोई भूमिका नहीं है.

अंतरराष्ट्रीय मंच पर भीख का कटोरा लेकर पहुंचा पाकिस्तान

पाकिस्तान अब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का रुख करने की सोच रहा है, लेकिन भारत कानूनी रूप से पूरी तरह तैयार है. जलशक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने साफ कहा है कि पाकिस्तान को अब एक बूंद पानी भी नहीं दी जाएगी. गृहमंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और जल संसाधन विशेषज्ञों के साथ हुई बैठकों में इस निर्णय को कार्यान्वित करने के लिए अल्पकालिक, मध्यकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं का खाका तैयार किया गया है.

पाकिस्तान अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर ‘भीख का कटोरा’ लेकर पहुंच गया है. उसका कहना है कि भारत को पाकिस्तानी के नागरिकों पर जल युद्ध नहीं थोपना चाहिए. पाकिस्तानी सेना ने यह भी धमकी दी है कि अगर भारत ने पानी रोका तो वह भारत के लोगों की ‘सांस रोक देगा’. लेकिन इस समय भारत न तो धमकियों के सामने झुकने को तैयार है, न ही किसी बाहरी देश के हस्तक्षेप को स्वीकार करने के मूड में है.

भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब कोई भी द्विपक्षीय बातचीत तभी होगी जब पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन बंद करे और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) को भारत को सौंपने पर बात करे. भारत का यह कदम न केवल रणनीतिक दृष्टि से अहम है, बल्कि यह राष्ट्रहित और सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक निर्णायक मोड़ भी है.

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