14 घंटे पहलेलेखक: संदीप सिंह
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बीते दिनों उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में टीचर द्वारा थप्पड़ मारे जाने के बाद नर्सरी के साढ़े तीन साल के बच्चे की मौत हो गई। दूसरी क्लास में पढ़ने वाले मृतक के भाई ने बताया कि उसका भाई रो रहा था। टीचर्स उसे बेंच पर बैठा गईं। जब उसने रोना बंद नहीं किया तो टीचर ने उसके गाल पर जोर से थप्पड़ मारा, जिससे उसका सिर पास की बेंच से टकरा गया और मुंह-नाक से खून बहने लगा। आनन-फानन में उसे अस्पताल ले जाया गया और रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया।
यह कोई पहली घटना नहीं है। देशभर के स्कूलों से समय-समय पर ऐसे मामले सामने आते हैं। जहां बच्चों के साथ टीचर्स द्वारा मारपीट की जाती है। मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है या अपमानित किया जाता है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या टीचर को बच्चों के साथ मारपीट करने का अधिकार है? अगर नहीं तो भारतीय कानून इसे लेकर क्या कहता है?
तो चलिए, जानें अपने अधिकार में इन्हीं सवालों के जवाब तलाशेंगे।
- ऐसे मामलों में पेरेंट्स कहां शिकायत कर सकते हैं?
- अगर बच्चा चोटिल हो जाए या जान चली जाए तो क्या होती है सजा?
एक्सपर्ट:
सरोज कुमार सिंह, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
नरेश पारस, चाइल्ट राइट्स एक्टिविस्ट, आगरा, उत्तर प्रदेश
सवाल- क्या टीचर को बच्चे के साथ मारपीट या दंड देने का अधिकार है?
जवाब- टीचर को किसी भी छात्र के साथ शारीरिक दंड (corporal punishment) देने का कानूनी अधिकार नहीं है। भारतीय संविधान और कानून के अनुसार बच्चों को मारना, प्रताड़ित करना या डराकर पढ़ाना पूरी तरह गैरकानूनी और दंडनीय अपराध है। इसे लेकर भारतीय कानून कहता है कि-
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर व्यक्ति को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें बच्चों की गरिमा और सुरक्षा भी शामिल है।
- राइट टू एजुकेशन एक्ट, 2009 (RTE Act) की धारा 17 के अनुसार, कोई भी छात्र शारीरिक दंड या मानसिक प्रताड़ना का शिकार नहीं होगा। ऐसा करने वाले व्यक्ति के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘पेरेंट्स फोरम फॉर मीनिंगफुल एजुकेशन बनाम भारत सरकार (2001)’ केस में स्पष्ट रूप से कहा था कि-

स्कूलों में शारीरिक दंड का कोई स्थान नहीं है। बच्चों की गरिमा के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। अनुशासन सिखाने के लिए हिंसा का इस्तेमाल असंवैधानिक है।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि केंद्र और राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करें कि सभी स्कूलों में शारीरिक दंड पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाए। इसके खिलाफ सख्त नियम भी बनाए जाएं।

सवाल- अगर कोई टीचर बच्चे को थप्पड़ मारता है या पीटता है तो उसके खिलाफ क्या कानूनी कार्रवाई हो सकती है?
जवाब- भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत किसी टीचर का बच्चे पर हाथ उठाना अपराध है। ऐसी स्थिति की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग धाराएं लग सकती हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए-

सवाल- शिक्षक बच्चों को बार-बार डांटते हैं, भद्दे नामों से पुकारते हैं या उन्हें दोस्तों के सामने शर्मिंदा करते हैं, क्या ये भी अपराध हैं?
जवाब- एडवोकेट सरोज कुमार सिंह बताते हैं कि बच्चों को अपमानित करना, डराना, अलग-थलग करना, भद्दे नामों से बुलाना या मानसिक रूप से प्रताड़ित करना भी मानसिक हिंसा की श्रेणी में आता है। इसे कॉर्पोरल पनिशमेंट में शामिल किया जाता है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और UNICEF के अनुसार, ये व्यवहार बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए यह कानून के तहत दंडनीय अपराध है।
सवाल- अगर स्कूल मैनेजमेंट ऐसे मामले को दबाता है तो क्या वह भी दोषी है?
जवाब- अगर स्कूल मैनेजमेंट ऐसे मामलों को नजरअंदाज करता है या शिकायत को दबाता है, तो वह भी सह-अपराधी (abetment) माना जाएगा।
ऐसे मामले में RTE एक्ट (राइट टू एजुकेशन एक्ट), 2009 और JJ एक्ट (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट), 2015 के तहत स्कूल पर भी कार्रवाई हो सकती है। इसमें स्कूल की मान्यता रद्द करना, जुर्माना और जिम्मेदार अधिकारियों पर केस दर्ज हो सकता है।
सवाल- क्या माता-पिता और रिश्तेदार भी बच्चों के साथ मारपीट के लिए दोषी हो सकते हैं?
जवाब- एडवोकेट सरोज कुमार सिंह बताते हैं कि भारतीय कानून के तहत घर के अंदर की बाल प्रताड़ना भी अपराध मानी जाती है और उसके लिए सजा भी हो सकती है। माता-पिता या रिश्तेदार बच्चे के साथ मारपीट करते हैं, उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं या बार-बार डराने-धमकाने जैसे व्यवहार करते हैं, तो यह सिर्फ अनुशासन नहीं, बल्कि हिंसा (abuse) माना जाता है। कोर्ट ऐसे मामलों में सबसे पहले आरोपी की इंटेंशन (इरादा) देखता है। इसके आधार पर सजा हो सकती है।

सवाल- अगर कोई नाबालिग आरोपी किसी बच्चे के साथ मारपीट करता है, तो उसे क्या सजा हो सकती है?
जवाब- अगर कोई नाबालिग (18 साल से कम उम्र) बच्चा किसी अन्य बच्चे के साथ मारपीट करता है, तो उस पर कार्रवाई के नियम एडल्ट से अलग होते हैं। भारत में ऐसे मामलों को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 के तहत देखा जाता है। नाबालिगों को सुधार की संभावना मानते हुए कानून उनके लिए थोड़ी अलग प्रक्रिया तय करता है। इसे इन पॉइंट्स से समझिए-
- अगर आरोपी की उम्र 16 से 18 साल के बीच है और उसने गंभीर अपराध (जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाना) किया है तो जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड यह जांच करेगा कि क्या उसे एडल्ट की तरह ट्रायल दिया जाना चाहिए।
- अगर बोर्ड को लगता है कि नाबालिग को अपराध का पूरा बोध था और वह जानबूझकर किया गया तो उसे एडल्ट के रूप में मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।
सजा क्या हो सकती है?
- अगर आरोपी की उम्र कम है (16 से नीचे) या मामला कम गंभीर है तो उसे सुधारगृह (Observation Home) में रखा जाता है।
- इसमें अधिकतम 3 साल तक सुधारगृह में भेजा जा सकता है। उसे ऐसे मामले में जेल नहीं भेजा जाता है।
- अगर एडल्ट की तरह ट्रायल होता है तो भारतीय न्याय संहिता(BNS) के अनुसार सामान्य मारपीट पर 1 से 3 साल की सजा हो सकती है, लेकिन यह फैसला कोर्ट की अनुमति से ही संभव है।

सवाल- बच्चों के मानसिक और शारीरिक कल्याण के लिए स्कूलों में कैसी निगरानी होनी चाहिए?
जवाब- चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस कहते हैं कि बच्चों की सुरक्षा के लिए हर स्कूल में एक निगरानी समिति कॉरपोरल पनिशमेंट मॉनिटरिंग सेल (CPMC) बननी चाहिए। इस समिति का काम यह होगा कि स्कूल में बच्चों के साथ मारपीट या मानसिक प्रताड़ना न हो। इस समिति में ये लोग होने चाहिए-
- दो शिक्षक
- दो अभिभावक (जिन्हें बाकी पेरेंट्स चुनें)
- एक डॉक्टर
- एक वकील
- एक काउंसलर (जो बच्चों से बात कर सके)
- एक सामाजिक कार्यकर्ता (जो महिला या बच्चों के अधिकारों से जुड़ा हो)
- दो छात्र
यह समिति बच्चों की शिकायत सुनेगी, उनके मानसिक हालात पर ध्यान देगी और जरूरत होने पर मदद भी दिलाएगी। इससे स्कूल का माहौल सुरक्षित और बच्चों के अनुकूल बन पाएगा।
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