Friday, June 27, 2025
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जरूरत की खबर- हजार में एक बच्चे को डाउन सिंड्रोम: ये क्यों होता है, इसका इलाज क्या है, डॉक्टर से जानें हर जरूरी सवाल का जवाब


8 घंटे पहलेलेखक: शिवाकान्त शुक्ल

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हाल ही में अभिनेता आमिर खान की फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ रिलीज हुई। इस फिल्म में बास्केटबॉल कोच और ‘डाउन सिंड्रोम’ से ग्रस्त बच्चों की कहानी दिखाई गई है।

डाउन सिंड्रोम एक जन्मजात जेनेटिक कंडीशन है, जिसमें बच्चे के शरीर की हर कोशिका में एक अतिरिक्त गुणसूत्र (Chromosome) मौजूद होता है। इस वजह से उनका शारीरिक और मानसिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता है या उसमें देरी होती है।

यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में हर 1,000-1,100 में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होता है। अनुमान है कि दुनिया में 16 से 54 लाख लोग इससे पीड़ित हैं।

वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 800-1,000 में से लगभग एक बच्चा डाउन सिंड्रोम के साथ जन्म लेता है। यानी यहां हर साल करीब 30,000 बच्चे डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होते हैं।

डाउन सिंड्रोम की गंभीरता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने साल 2012 में हर साल 21 मार्च को ‘वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे’ के रूप में मनाने का फैसला किया। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य डाउन सिंड्रोम के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना है।

तो चलिए, आज जरूरत की खबर में हम डाउन सिंड्रोम के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • डाउन सिंड्रोम किन कारणों से होता है?
  • इसके लक्षण क्या होते हैं?
  • क्या ऐसे बच्चे एक खुशहाल और सामान्य जिंदगी जी सकते हैं?

एक्सपर्ट: डॉ. सुनीता बिजारनिया महाय, वाइस चेयरपर्सन, मेडिकल जेनेटिक्स और जीनोमिक्स, सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली

सवाल- डाउन सिंड्रोम क्या होता है?

जवाब- डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक कंडीशन है। ये तब होती है, जब बच्चे की कुछ या सभी कोशिकाओं में एक अतिरिक्त गुणसूत्र मौजूद होता है। यह अतिरिक्त गुणसूत्र आमतौर पर 21वें गुणसूत्र की एक प्रति होती है, जिसे ट्राइसोमी 21 भी कहा जाता है।

सामान्य तौर पर इंसान की हर कोशिका में 23 जोड़ी (कुल 46) गुणसूत्र होते हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में ये संख्या 47 होती है। यह अतिरिक्त गुणसूत्र बच्चे के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास को प्रभावित करता है।

डाउन सिंड्रोम से प्रभावित हर बच्चा एक जैसा नहीं होता है। कुछ बच्चों में बोलने में परेशानी या चलने में देरी जैसे बहुत हल्के लक्षण होते हैं। जबकि कुछ बच्चों को सीखने, बोलने, चलने या हार्ट, थायरॉइड जैसी बीमारियों के कारण ज्यादा केयर और इलाज की जरूरत पड़ सकती है।

सवाल- डाउन सिंड्रोम किन कारणों से होता है?

जवाब- डाउन सिंड्रोम का मुख्य कारण कंसीव के समय कोशिकाओं में एक अतिरिक्त गुणसूत्र का बन जाना है। यह एक जेनेटिक बदलाव है, जो शरीर की हर कोशिका को प्रभावित करता है। यह स्थिति अक्सर पूरी तरह से एक संयोग होती है। इसमें माता-पिता की कोई गलती नहीं होती।

हालांकि मां की उम्र 35 साल से ज्यादा और पिता की उम्र 40 से ज्यादा होने पर इसका रिस्क थोड़ा बढ़ जाता है। अधिकांश मामलों में यह स्थिति अपने आप बन जाती है। डाउन सिंड्रोम को रोका नहीं जा सकता है।

डाउन सिंड्रोम तीन प्रकार का होता है। इसमें सबसे आम प्री-ट्राइसॉमी 21 है, जो लगभग 95% मामलों में देखा जाता है। दूसरा प्रकार ट्रांसलोकेशन है। इसमें 21वां गुणसूत्र किसी अन्य गुणसूत्र से जुड़ जाता है। यह 4% से कम मामलों में पाया जाता है। तीसरा और सबसे दुर्लभ प्रकार मोजेक है। इसमें कुछ कोशिकाओं में 47 और कुछ में 46 गुणसूत्र होते हैं। यह सिर्फ 1% से भी कम मामलों में होता है।

सवाल- डाउन सिंड्रोम के लक्षण क्या होते हैं?

जवाब- डाउन सिंड्रोम के लक्षण शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक हो सकते हैं। ये हर बच्चे में अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ लक्षण जन्म के समय दिखते हैं, जबकि कुछ धीरे-धीरे बढ़ती उम्र के साथ सामने आते हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए-

सवाल- डाउन सिंड्रोम का पता कैसे लगाया जा सकता है?

जवाब- डॉ. सुनीता बिजारनिया महाय बताती हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद दोनों समय डाउन सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए कुछ टेस्ट होते हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए-

सवाल- क्या डाउन सिंड्रोम का इलाज संभव है?

जवाब- डॉ. सुनीता बिजारनिया महाय बताती हैं कि डाउन सिंड्रोम का कोई स्थायी इलाज नहीं है। यह एक जीवनभर चलने वाली जेनेटिक कंडीशन है, जो बच्चे के गर्भ में रहते समय ही विकसित हो जाती है। हालांकि प्रेग्नेंसी के दौरान जांच से इसके बारे में समय रहते पता चल सकता है। इससे माता-पिता को मानसिक, भावनात्मक और मेडिकल रूप से तैयारी करने का मौका मिलता है।

हालांकि इसके लक्षणों का कम करके बच्चे को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से कुछ हद तक सक्षम बनाया जा सकता है। इसके लिए फिजिकल, ऑक्यूपेशनल और बिहेवियरल थेरेपी दी जा सकती है ताकि मांसपेशियों की ताकत बढ़े और रोजमर्रा के काम आसान हो सकें।

इसके अलावा स्पीच थेरेपी, स्पेशल एजुकेशन प्रोग्राम और जरूरी मेडिकल समस्याओं के इलाज से बच्चा आत्मनिर्भर और खुशहाल जीवन जी सकता है।

सवाल- क्या डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोग शादी कर सकते हैं या बच्चे पैदा कर सकते हैं?

जवाब- हां, अगर पीड़ित शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तौर इसके लिए तैयार हो तो वह शादी कर सकता है। जहां तक बच्चे पैदा करने की बात है तो डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त महिलाएं कंसीव कर सकती हैं।

एक रिसर्च के मुताबिक, लगभग 50% महिलाएं बच्चे को जन्म देने में सक्षम होती हैं। हालांकि उनके बच्चों में डाउन सिंड्रोम होने का खतरा 35% से 50% तक हो सकता है। वहीं पुरुषों में फर्टिलिटी बहुत कम पाई जाती है। यानी अधिकांश पुरुष डाउन सिंड्रोम के मामले में बायोलॉजिकली पिता नहीं बन पाते हैं।

सवाल- क्या डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे बोलना, चलना और पढ़ना सीख सकते हैं?

जवाब- हां, लेकिन उन्हें इन चीजों को सीखने में आम बच्चों की तुलना में थोड़ा ज्यादा समय और विशेष सहयोग की जरूरत होती है।

सवाल- क्या डाउन सिंड्रोम बच्चों को और भी बीमारियों का खतरा होता है?

जवाब- हां, उन्हें हार्ट डिजीज, थायरॉइड, सुनने-देखने और पाचन संबंधी समस्याओं का खतरा थोड़ा ज्यादा होता है।

सवाल- क्या ऐसे बच्चे सामान्य जिंदगी जी सकते हैं?

जवाब- हां, सही इलाज, शिक्षा और परिवार के सहयोग से वे स्कूल जा सकते हैं, काम कर सकते हैं और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।

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