चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में आयोजित कूटनीतिक चर्चाओं के दौरान रूस के प्रति चीन के मजबूत समर्थन को दोहराया। यह बयान ऐसे समय आया है जब वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच चीन और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी को अधिक मजबूती मिली है।
वार्ता के मुख्य बिंदु:
- वैश्विक स्थिरता के लिए सहयोग:
- शी जिनपिंग ने कहा कि चीन और रूस का सहयोग वैश्विक स्थिरता बनाए रखने और बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- उन्होंने रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी को “दोनों देशों के हितों के अनुकूल” बताया।
- यूक्रेन युद्ध पर चर्चा:
- चीन ने यूक्रेन युद्ध पर निष्पक्ष रुख बनाए रखने का दावा किया है, लेकिन शी जिनपिंग ने रूस के “संप्रभुता और सुरक्षा चिंताओं” को समझने की बात कही।
- चीन ने एक बार फिर कहा कि वह युद्ध को समाप्त करने के लिए शांतिपूर्ण समाधान की वकालत करता है।
- आर्थिक सहयोग में विस्तार:
- रूस और चीन ने व्यापारिक सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया, खासकर ऊर्जा, कृषि, और तकनीकी क्षेत्रों में।
- पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस के लिए चीन एक विकल्प बाजार के रूप में उभरा है।
- संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग:
- दोनों नेताओं ने कहा कि वे संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन जारी रखेंगे।
- उन्होंने एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का विरोध करते हुए “नए विश्व व्यवस्था” की आवश्यकता पर जोर दिया।
रणनीतिक साझेदारी की अहमियत
- आर्थिक भागीदारी:
- चीन रूस से तेल और प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा आयातक है, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को और मजबूत बनाता है।
- सैन्य सहयोग:
- हाल के वर्षों में दोनों देशों ने कई संयुक्त सैन्य अभ्यास किए हैं, जो उनकी मजबूत रक्षा साझेदारी को दर्शाता है।
- भू-राजनीतिक संदेश:
- चीन और रूस का यह समर्थन पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ, को एक कूटनीतिक चुनौती पेश करता है।
पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया:
- पश्चिमी देशों ने चीन-रूस संबंधों को लेकर चिंता जताई है, खासकर यूक्रेन संकट के बाद।
- अमेरिका ने चीन को चेतावनी दी है कि वह रूस को किसी भी प्रकार की सैन्य सहायता प्रदान न करे।
निष्कर्ष:
शी जिनपिंग द्वारा रूस के लिए चीन के समर्थन की पुन: पुष्टि दोनों देशों के बीच बढ़ते रणनीतिक और आर्थिक सहयोग को दर्शाता है। यह कदम वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल सकता है और मौजूदा भू-राजनीतिक तनावों को और बढ़ा सकता है।