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Health Tips: कनेर पौधा आयुर्वेद और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. त्वचा रोग, घाव भरने और कीटाणुनाशक के रूप में उपयोगी है. धार्मिक रूप से भगवान शिव और हनुमान जी से जुड़ा है.
कनेर की पत्तियों का लेप खुजली, दाद और फोड़े-फुंसियों से राहत देता है
हाइलाइट्स
- कनेर पौधा त्वचा रोग और घाव भरने में उपयोगी
- भगवान शिव और हनुमान जी से जुड़ा है कनेर का धार्मिक महत्व
- खुजली और फोड़े-फुंसियों पर लगाया जाता है कनेर की पत्तियों का लेप
जयपुर. प्रकृति में ऐसे अनेकों पेड़ पौधे पाए जाते हैं जो आयुर्वेद और धर्म दिनों में बहुत उपयोगी है. ऐसा ही एक पौधा है कनेर. इस पौधे का उपयोग आयुर्वेद और पारंपरिक घरेलू नुस्खों में किया जाता है. दादी-नानी के नुस्खों में कनेर का उपयोग मुख्य रूप से त्वचा रोगों, घाव भरने और कीटाणुनाशक के रूप में किया जाता है. 75 वर्षीय दादी मदनी देवी ने बताया कि पुराने समय में जब हॉस्पिटलों की कमी थी और दवाइयां मिलना मुश्किल थी तो कनेर के पौधे का उपयोग बीमारियों को भगाने के लिए किया जाता था.
खुजली, दाद से दिलाएगा राहत
उन्होंने बताया कि इसकी पत्तियों का लेप बनाकर खुजली, दाद और फोड़े-फुंसियों पर लगाया जाता है.आयुर्वेदिक डॉक्टर किशन बरवड़ ने बताया कि आयुर्वेद में कनेर को करवीर भी कहा जाता है. इसका उपयोग हृदय रोग, सूजन और पुराने घावों के इलाज में किया जाता है. आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसकी जड़, पत्तियों और फूलों का उल्लेख मिलता है.
कनेर के धार्मिक महत्व
धर्म विशेषज्ञ चंद्रप्रकाश ढांढण ने बताया कि धार्मिक दृष्टि से कनेर का विशेष महत्व है. हिंदू धर्म में इसे भगवान शिव और हनुमान जी से जोड़ा जाता है. कनेर के फूलों का उपयोग पूजा-पाठ और मंदिरों में श्रृंगार के लिए किया जाता है. मान्यता है कि यह पौधा नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सकारात्मक वातावरण बनाता है। धर्म विशेषज्ञ ने बताया कि इस इस पौधे को घर के आंगन में लगाना शुभ माना जाता है.
कनेर के घरेलू नुस्खे
75 वर्षीय दादी मदनी देवी ने बताया कि त्वचा रोगों जैसे दाद-खुजली या फोड़े-फुंसियों के लिए 4-5 पत्तियों को पीसकर पेस्ट बनाएं और प्रभावित जगह पर 15-20 मिनट तक लगाकर धो दें. घाव भरने में पत्तियों को गर्म करके निकाले गए रस को रुई से लगाएं, यह कीटाणुनाशक का काम करता है. इसके अलावा जोड़ों के दर्द के लिए कनेर की पत्तियों को तिल के तेल में गर्म कर मालिश करें. सर्दी-जुकाम में सूखी पत्तियों को धूपन के रूप में जलाएं, पर धुआं अधिक न लें. कीटनाशक के तौर पर पत्तियों का काढ़ा बनाकर छिड़काव करें, जिससे मच्छर-कीड़े दूर भागते हैं.